Book Title: Shatkhandagama Pustak 01
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
View full book text
________________
१७२]
छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[१, १, १२. कुहेउ-कुदिट्ठतेहि झडिदि विराहओ' । पंचसु गुणेसु के गुणे अस्सिऊण असंजदसम्माइटिगुणस्सुप्पत्ती जादेत्ति पुच्छिदे उच्चदे, सत्त-पयडि-क्खएणुप्पण्ण-सम्मत्तं खइयं । तेसिं चेव सत्तण्हं पयडीणुवसमेणुप्पण्ण-सम्मत्तमुवसमियं । सम्मत्त-देसघाइ-वेदयसम्मत्तुदएणुप्पण्ण-वेदयसम्मत्तं खओवसमियं । मिच्छत्ताणताणुबंधीणं सव्वघाइ-फद्दयाणं उदय-क्खएण तेसिं चेव संतोवसमेण अहवा सम्मामिच्छत्त-सव्वघाइ-फद्दयाणं उदय-क्खएण तेसिं चेव संतोवसमेण उहयत्थ सम्मत्त-देसघाइ-फयाणमुदएणुप्पजइ जदो तदो वेदयसम्मत्तं खओवसमियमिदि केसिंचि आइरियाणं वक्खाणं तं किमिदि णेच्छिादि, इदि चेत्तण्ण, पुव्वं उत्तुत्तरादो । 'असंजद' इदि जं सम्मादिहिस्स विसेसण-वयणं तमंतदीवयत्तादो
अतः कुहेतु और कुदृष्टान्तसे उसे सम्यक्त्वकी विराधना करने में देर नहीं लगती है।
पांच प्रकारके भावोंमेंसे किन किन भावोंके आश्रयसे असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानकी उत्पत्ति होती है । इसप्रकार पूछने पर आचार्य उत्तर देते हैं, कि सात प्रकृतियोंके क्षयसे जो सम्यग्दर्शन उत्पन्न होता है वह क्षायिक है, उन्हीं सात प्रकृतियोंके उपशमसे उत्पन्न हुआ सम्यक्त्व उपशमसम्यग्दर्शन होता है और सम्यक्त्वका एकदेश घातरूपसे वेदन करानेबाली सम्यक्प्रकृतिके उदयसे उत्पन्न होनेवाला वेदकसम्यक्त्व क्षायोपशमिक है।
. शंका-मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धीके उदयमें आनेवाले. सर्वधाती स्पर्द्धकोंके उदयाभावी क्षयसे तथा आगामी कालमें उदयमें आनेवाले उन्हींके सर्वधाती स्पर्द्धकोंके सदवस्थारूप उपशमसे अथवा सम्याग्मिथ्यात्वके उदयमें आने वाले सर्वघाती स्पर्द्धकोंके उदयाभावी क्षयसे, आगामी कालमें उदयमें आनेवाले उन्हींके सवस्थारूप उपशमसे तथा इन दोनों ही अवस्थाओंमें सम्यक्प्रकृतिमिथ्यात्वके देशघाती स्पर्धकोंके उदयसे जब क्षयोपशमरूप सम्यक्त्व उत्पन्न होता है तब उसे वेदक सम्यग्दर्शन कहते हैं। ऐसा कितने ही आचार्टीका मत है उसे यहां पर क्यों नहीं स्वीकार किया है ?
समाधान-यह कहना ठीक नहीं है, क्योंकि, इसका उत्तर पहले दे चुके हैं। . विशेषार्थ-जिसप्रकार मिश्र गुणस्थान की उत्पत्ति सम्यग्मिथ्यात्व प्रकृति के उदयकी मुख्यतासे बतला आये हैं, उसीप्रकार यहां पर भी सम्य प्रकृतिके उदयकी मुख्यता समझना चाहिये । यदि इस सम्यक्त्वमें सम्यक्प्रकृतिके उदयकी मुख्यता न मान कर केवल मिथ्यास्वादिके क्षयोपशमसे ही इसकी उत्पत्ति मानी जावे तो सादि मिथ्यादृष्टिकी अपेक्षा सम्यक. प्रकृति और सम्याग्मिथ्यात्वप्रकृतिके उदयाभाव क्षय और सवस्थारूप उपशमसे तथा मिथ्यात्वप्रकृतिके उदयसे मिथ्यात्व गुणस्थानको भी क्षायोपशमिक मानना पड़ेगा। क्योंकि, वहां पर भी क्षयोपशमका लक्षण घटित होता है। इसलिये इस सम्यक्त्वकी उत्पत्ति क्षयोपशमकी प्रधानतासे न मानकर सम्यक्प्रकृतिके उदयकी प्रधानतासे समझना चाहिये।
सूत्रमें सम्यग्दृष्टिके लिये जो असंयत विशेषण दिया गया है, वह अन्तदीपक है, इस. १ दंसणमोहुदयादो उप्पञ्जइ जं पयत्थसदहणं । चलमलिणमगाटं तं वेदयसम्मत्तामिदि जाणे ॥गो. जी. ६४५.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org