Book Title: Shatkhandagama Pustak 01
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१, १, २५. ]
संत - परूवणाणुयोगद्दारे गदिमग्गणापरूवणं
[२०५
नारकग्रहणं मनुष्यादिनिराकरणार्थम् । चतुर्ग्रहणं पञ्चादिसंख्यापोहनार्थम् । अस्तिग्रहणं प्रतिपत्तिगौरवनिरासार्थम् । नारकाचतुर्षु स्थानेषु सन्तीत्यस्मात्सामान्यवचनात्संशयो मा जनीति तदुत्पत्तिनिराकरणार्थं मिथ्यादृष्ट्यादिगुणानां नामनिर्देशः । अस्तु मिध्यादृष्टिगुणे तेषां सत्त्वं मिथ्यादृष्टिषु तत्रोत्पत्तिनिमित्तमिथ्यात्वस्य सत्वात् । नेतरेषु गुणेषु तेषां सत्त्वं तत्रोत्पत्तिनिमित्तस्य मिथ्यात्वस्यासत्च्त्वादिति चेन, आयुषो बन्धमन्तरेण मिथ्यात्वाविरतिकषायाणां तत्रोत्पादनसामर्थ्याभावात् । न च बद्धस्यायुषः सम्यक्त्वा - निरन्वयविनाशः आर्षविरोधात् । न हि वद्धायुषः सम्यक्त्वं संयममिव न प्रतिषद्यन्ते सूत्रविरोधात् । सम्यग्दृष्टीनां बद्धायुषां तत्रोत्पत्तिरस्तीति सन्ति तत्रासंयत सम्यग्दृष्टयः, सासादन गुणवतां तत्रोत्पत्तिस्तद्गुणस्य तत्रोत्पच्या सह विरोधात् । तर्हि कथं तद्वतां
मनुष्यादिके निराकरण करनेके लिये सूत्रमें नारक पदका ग्रहण किया है। पांच आदि संख्याओं के निराकरण करनेके लिये 'चतुर' पदका ग्रहण किया है । जाननेमें कठिनाई न पड़े. इसलिये 'अस्ति' पदका ग्रहण किया है । नारकी चार गुणस्थानों में होते हैं, इस सामान्य वचनसे संशय न हो जाय कि वे चार गुणस्थान कौन कौनसे हैं, इसलिये इस संशयको दूर करनेके लिये मिथ्यादृष्टि आदि गुणस्थानोंका नाम-निर्देश किया है ।
शंका- मिथ्यादृष्टि गुणस्थानमें नारकियोंका सत्त्व रहा आवे, क्योंकि, वहां पर नारकियोंमें उत्पत्तिका निमित्त कारण मिथ्यादर्शन पाया जाता है। किंतु दूसरे गुणस्थानोंमें नारकियोंका सत्व नहीं पाया जाना चाहिये, क्योंकि, अन्य गुणस्थानसहित नारकियोंमें उत्पत्तिका निमित्त कारण मिथ्यात्व नहीं माना गया है ?
समाधान - ऐसा नहीं है, क्योंकि, नरकायुके बन्ध विना मिथ्यादर्शन, अविरति और कषायकी नरक उत्पन्न करानेकी सामर्थ्य नहीं है । और पहले बंधी हुई आयुका पीछे से उत्पन्न हुए सम्यग्दर्शन से निरन्वय नाश भी नहीं होता है, क्योंकि, ऐसा मान लेने पर आपसे विरोध आता है। जिन्होंने नरकायुका बन्ध कर लिया है ऐसे जीव जिसप्रकार संयमको प्राप्त नहीं हो सकते है उसी प्रकार सम्यक्त्वको प्राप्त नहीं होते हैं, यह बात भी नहीं है, क्योंकि, ऐसा मान लेने पर भी सूत्र से विरोध आता है ।
शंका - जिन जीवोंने पहले नरकायुका बन्ध किया और जिन्हें पीछेले सम्यग्दर्शन उत्पन्न हुआ ऐसे बद्धायुष्क सम्यग्दृष्टियोंकी नरकमें उत्पत्ति होती है, इसलिये नरकमें: असंयतसम्यग्दृष्टि भले ही पाये जायें, परंतु सासादन गुणस्थानवालोंकी ( मरकर ) नरक में उत्पत्ति नहीं हो सकती है, क्योंकि सासादन गुणस्थानका नरकमें उत्पत्तिके साथ विरोध है । इसलिये सासादन गुणस्थानवालोंका नरकमें सद्भाव कैसे पाया जा सकता है ?
१ वत्तारि विखेत्ताई आउगबंधेण होइ सम्मर्च | अणुवदमहव्वा ण लहइ देवाउन मोक्तः । गो.क. ३३४. २ सासणो णायापुणे । गो. जी. १२८. गिरयं सासणसम्मो ण गच्छदिति । गो . क. २६२.
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