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१, १, २७.] संत-पख्वणाणुयोगद्दारे गदिमग्गणापरूवणं
[२१९ असंग्वेज्ज-गुणसेढीए ग्ववण-हेदु-परिणामे उज्झिऊणण्णे परिणामा द्विदि-अणुभागखंडय घादस्स कारणभूदा अत्थि, तेसिं णिरूवय-सुत्ताभावादो। 'कज्ज-गाणत्तादो कारण-णाणत्तमणुमाणिज्जदि ' इदि एदमवि ण घडदे, एयादो मोग्गरादो बहु-कोडिकवालोवलंभा । तत्थ वि होदु णाम मोग्गरो एओ, ण तस्स सत्तीणमेयत्तं, तदो एयक्खप्परुप्पत्ति-प्पसंगादो इदि चे तो क्वहि एत्थ वि भवदु णाम द्विदिकंडयघाद-अणुभागकंडयघाद-हिदिवंधोसरण-गुणसंकम गुणसेढी-हिदि-अणुभागबंध-परिणामाणं णाणत्तं तो वि एग-समय-संठिय-णाणा-जीवाणं सरिसा चेव, अण्णहा अणियहि-विसेसणाणुववत्तीदो । जइ एवं, तो सव्वेसिमणियटीणमेय-समयम्हि वट्टमाणाणं हिदि-अणुभागघादाणं सरिसत्तं पावेदि त्ति चे ण एस दोसो, इट्टत्तादो । पढम-हिदि-अणुभाग-खंडयाणं
भूत परिणामोंको छोड़कर अन्य कोई भी परिणाम स्थितिकाण्डकघात और अनुभागकाण्डकघातके कारणभूत नहीं है, क्योंकि, उन परिणामों का निरूपण करनेवाला सूत्र (आगम) नहीं पाया जाता है।
शंका-- अनेक प्रकारके कार्य होनेसे उनके साधनभूत अनेक प्रकारके कारणोंका अनुमान किया जाता है ? अर्थात् नवें गुणस्थानमें प्रतिसमय असंख्यातगुणी कर्मनिर्जरा, स्थितिकाण्डकतात आदि अनेक कार्य देखे जाते हैं, इसलिये उनके साधनभूत परिणाम भी अनेक प्रकारके होने चाहिये।
समाधान- यह कहना भी नहीं बनता है, क्योंकि, एक मुद्गरसे अनेक प्रकारके कपाल रूप कार्यकी उपलब्धि होती है।
शंका-वहां पर मुद्गर एक भले ही रहा आवे, परंतु उसकी शक्तियों में एकपना नहीं बन सकता है। यदि मुद्गरकी शक्तियों में भी एकपना मान लिया जावे तो उससे एक कपालरूप कार्यकी ही उत्पत्ति होगी?
समाधान- यदि ऐसा है तो यहां पर भी स्थितिकाण्डकयात, अनुभागकाण्डकघात, स्थितिबन्धापसरण, गुणसंक्रमण, गुणश्रेणीनिर्जरा. शमप्रकृतियों के स्थितिबन्ध और अनभागबन्धके कारणभूत परिणामों में नानापना रहा आवे, तो भी एक समयमें स्थित नाना जीवोंके परिणाम सदृश ही होते हैं, अन्यथा उन परिणामोंके 'अनिवृत्ति' यह विशेषण नहीं बन सकता है।
शंका- याद ऐसा है, तो एक समयमें स्थित संपूर्ण अनिवृत्तिकरण गुणस्थानवालोंके स्थितिकाण्डकघात और अनुभागकाण्डकघातकी समानता प्राप्त हो जायगी?
समाधान-यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि, यह बात तो हमें इष्ट ही है।
शंका-प्रथम-स्थितिकाण्डक और प्रथम-अनुभागकाण्डकोंकी समानताका नियम तो नहीं पाया जाता है, इसलिये उक्त कथन घटित नहीं होता है ?
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