Book Title: Shatkhandagama Pustak 01
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१८० ]
छक्खंडागमे जीवाणं
[ १, १, १६.
करणाः परिणामाः, न पूर्वा : अपूर्वाः । नानाजवि/पेक्षया प्रतिसमयमादितः क्रमप्रवृद्धासंख्येयलोकपरिणामस्यास्य गुणस्यान्तर्विवक्षितसमयवर्तिप्राणिनो व्यतिरिच्यान्यसमयवर्तिप्राणिभिरप्राप्या अपूर्वा अत्रतनपरिणामैरसमाना इति यावत् । अपूर्वाश्च ते करणाचा पूर्वकरणाः । एतेनापूर्वविशेषणेन अधःप्रवृत्तपरिणामव्युदासः कृत इति दृष्टव्यः, तत्रतन परिणामानामपूर्वत्वाभावात् । अपूर्वशब्द: प्रागप्रतिपन्नार्थवाचको नासमानार्थवाचक इति चेन, पूर्वसमानशब्दयोरेकार्थत्वात् । तेषु प्रविष्टा शुद्धिर्येषां ते अपूर्वकरणप्रविष्टशुद्धयः । के ते ? संयताः । तेषु संयतेषु ' अत्थि ' सन्ति । नदीस्रोतोन्यायेन
जीव होते हैं ॥ १६ ॥
करण शब्दका अर्थ परिणाम है, और जो पूर्व अर्थात् पहले नहीं हुए उन्हें अपूर्व कहते हैं । इसका तात्पर्य यह है, कि नाना जीवोंकी अपेक्षा आदिले लेकर प्रत्येक समय में क्रमसे बढ़ते हुए असंख्यात लोक-प्रमाण परिणामवाले इस गुणस्थानके अन्तर्गत विवक्षित समयवर्ती जीवों को छोड़कर अन्य समयवर्ती जीवोंके द्वारा अप्राप्य परिणाम अपूर्व कहलाते हैं । अर्थात् विवक्षित समयवर्ती जीवोंके परिणामोंसे भिन्न समयवर्ती जीवों के परिणाम असमान अर्थात् विलक्षण होते हैं । इसतरह प्रत्येक समय में होनेवाले अपूर्व परिणामको अपूर्वकरण कहते हैं। इसमें दिये गये अपूर्व विशेषणले अधः प्रवृत्त-परिणामों का निराकरण किया गया है ऐसा समझना चाहिये, क्योंकि, जहां पर उपरितन समयवर्ती जीवोंके परिणाम अधस्तन समयवर्ती जीवोंके परिणामों के साथ सदृश भी होते हैं और विसदृश भी होते हैं ऐसे अधःप्रवृत्तमें होनेवाले परिणामों में अपूर्वता नहीं पाई जाती है ।
शंका -- अपूर्व शब्द पहले कभी नहीं प्राप्त हुए अर्थका वाचक है, असमान अर्थका aras नहीं है, इसलिये यहां पर अपूर्व शब्दका अर्थ असमान या विसदृश नहीं हो सकता हैं ? समाधान - ऐसा नहीं है, क्योंकि पूर्व और समान ये दोनों शब्द एकार्थवाची हैं, इसलिये अपूर्व और असमान इन दोनों शब्दोंका अर्थ भी एक ही समझना चाहिये । ऐसे अपूर्व परिणामों में जिन जीवोंकी शुद्धि प्रविष्ट हो गई है, उन्हें अपूर्वकरण- प्रविष्ट -शुद्धि जीव कहते हैं ।
शंका- अपूर्वकरणरूप परिणामों में विशुद्धिको प्राप्त करनेवाले कौन होते हैं ?
समाधान - वे संयत ही होते हैं, अर्थात् संयतों में ही अपूर्वकरण गुणस्थान वाले जीवोंका सद्भाव होता है । और उन संयतों में उपशमक और क्षपक जीव होते हैं ।
शंका - नदीस्रोत- न्यायसे ' सन्ति ' इस पदकी अनुवृत्ति चलो आती है, इसलिये
१ अपूर्वा पूर्वा किया गच्छतीत्यपूर्वकरणम् । तत्र च प्रयमसमय एव स्थितिघात रसघात गुण श्रोणि गुणसंक्रमाः अन्यश्च स्थितिबन्धः इत्येते पञ्चाप्यधिकारा यौगपद्येन पूर्वमप्रवृत्ताः प्रवर्तन्ते इत्यपूर्वकरणम् । अभि. रा. को. (अपुव्वकरण)
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