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१२६] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[१, १, २. गणिज्जमाणे एगूणवीसदिमादो, जत्थतत्थाणुपुबीए गणिजमाणे बंधणादो । णामं बंध-वण्णणादो बंधणो ति गुणणामं । पमाणमक्खर-पय-संघाद-पडिवत्ति-अणियोगद्दारेहि संखेजमत्थदो अणंतं । वत्तव्वदा ससमयवत्तव्वदा । अत्याधियारो चउबिहो । तं जहा, बंधो बंधगो बंधाजं बंधविधाणं चेदि । एत्थ किं बंधादो ? एवं पुच्छा सम्बोसि कायया । णो बंधादो णो बंधणिज्जादो । बंधगादो बंधविधाणादो च । एत्थ वंधगे ति अहियारस्स एकारस अणियोगद्दाराणि । तं जहा, एगजीवेण सामित्तं एगजीवेण कालो एगजीवेण अंतरं णाणाजीवेहि भंगविचयो दव्वपमाणाणुगमो खेत्ताणुगमो पोसणाणुगमो णाणाजीवेहि कालाणुगमो णाणाजीवेहि अंतराणुगमो भागाभागाणुगमो अप्पाबहुगाणुगमो चेदि । एत्थ किं एगजीवेण सामित्तादो ? एवं पुच्छा सव्वेसि । णो एगजीवेण सामित्तादो, एवं वारणा सव्यसि । पंचमादो। दव्वपमाणादो दवपमाणाणुगमो णिग्गदो।
छटे अधिकारसे, पश्चादानुपूर्वीसे गिननेपर उन्नीसवें अधिकारसे और यथातथानुपूर्वीसे गिननेपर बन्धन नामके अधिकारसे प्रयोजन है । यह बन्धन नामका अधिकार बन्धका वर्णन करता है, इसलिये इसका 'बन्धन' यह गौण्यनाम है। यह अक्षर, पद, संघात, प्रतिपत्ति
और अनुयोगरूप द्वारोंकी अपेक्षा संख्यातप्रमाण और अर्थकी अपेक्षा अनन्तप्रमाण है। स्वसमयका वर्णन करनेवाला होनेसे इसमें स्वसमयवक्तव्यता है।
इसके अधिकार चार प्रकारके हैं, बन्ध, बन्धक, बन्धनीय और बन्धविधान । यहांपर क्या बन्धसे प्रयोजन है ? इत्यादि रूपसे चारों अधिकारों के विषय में पृच्छा करनी चाहिये। यहांपर बन्धसे प्रयोजन नहीं है और बन्धनीयसे भी प्रयोजन नहीं है, किन्तु बन्धक और बन्धविधानसे यहांपर प्रयोजन है।
इन बन्ध आदि चार अधिकारों से बन्धक इस अधिकारके ग्यारह अनुयोगद्वार है। वे इसप्रकार हैं, एक जीवकी अपेक्षा स्वामित्वानुगम, एक जीवकी अपेक्षा कालानुगम, एक जीवकी अपेक्षा अन्तरानुगम, नाना जीवोंकी अपेक्षा भंगविवयानुगम, द्रव्यप्रमाणानुगम, क्षेत्रानुगम, स्पर्शनानुगम, नाना जीवोंकी अपेक्षा कालानुगम, नाना जीवोंकी अपेक्षा अन्तरानुगम, भागाभागानगम और अल्पबहत्वानुगम। यहांपर क्या एक जीवकी अपेक्षा स्वामित्वानुगमसे प्रयोजन है ? इत्यादि रूपसे ग्यारह अनुयोगद्वारोंके विषयमें पृच्छा करनी चाहिये। यहांपर एक जीवकी अपेक्षा स्वामित्वानुगमसे प्रयोजन नहीं है, इत्यादि रूपसे सबका निषेध भी कर देना चाहिये। किन्तु यहां पांचवे द्रव्यप्रमाणानुगमसे प्रयोजन है, इसप्रकार उत्तर देना चाहिये।
- इस जीवस्थान शास्त्र में जो द्रव्यप्रमाणानुगम नामका अधिकार है, वह इस बन्धक नामके अधिकारके द्रव्यप्रमाणानुगम नामके पांचवे अधिकारसे निकला है।
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