Book Title: Shatkhandagama Pustak 01
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१२८]
छक्खंडागमे जीवाणं
[ १, १, २.
खेत्तपरूवणा पोसणपरूवणा कालपरूवणा अंतरपरूवणा अप्पा बहुगपरूवणा चेदि । एदाणि छ पुविल्लाणि दोणि एकदो मेलिदे जीवद्वाणस्स अट्ठ अणियोगद्दाराणि हवंति । पडिहाणबंधे वृत्त संतादि-छ- अणियोगद्दाराणि पयडिद्वाणबंधस्स वृत्ताणि । पुणो जीवहाणस्स संतादि-छ- अणियोगद्दाराणि चोद्दसहं गुणहाणाणं वुत्ताणि । कथं तेहिंतो एदाणमवदारोति ? ण एस दोसो, एदस्स पयडिद्वाणस्स बंधया मिच्छाइट्ठी अत्थि । एदस्स पयडिट्ठाणस्स बंधया मिच्छाइट्ठी एवदि खेते । एदस्स पयडिद्वाणस्स बंध हि मिच्छाइट्ठीहि एवदियं खेत्तं पोसिदं । एदस्स पयडिट्ठाणस्स बंधया मिच्छाइट्ठी तं मिच्छत्त - गुणमछदंता जहण्णेण एत्तियं कालमुकस्सेण एत्तियं कालमच्छंति । ताणमंतर - कालो जहष्णुकस्सेण एत्तिओ होदि । एवं सेसगुणद्वाणं च भणिऊण पुणो ताणमपात्रहुगं उत्तं । तेण तेहि पयडिद्वाणम्हि उत्त-छहि अणियोगद्दारेहि सह एगत्तं ण विरुज्झदे ।
स्पर्शनप्ररूपणा, कालप्ररूपणा, अन्तरप्ररूपणा और अल्पबहुत्वप्ररूपणा । ये छह और बन्धक अधिकार के ग्यारह अधिकार हैं, उनमेंके द्रव्यप्रमाणानुगममेंसे निकला हुआ द्रव्यप्रमाणानुगम तथा एकोत्तर प्रकृतिबन्धके जो चौवीस अधिकार हैं उनमेंके तेवीसवें भावानुगम मेंसे निकला हुआ भावप्रमाणानुगम, इसतरह इन सबको एक जगह मिला देने पर जीवस्थानके आठ अनुयोगद्वार हो जाते हैं ।
शंका —— प्रकृतिस्थानबन्धमें जो छह अनुयोगद्वार कहे गये हैं, वे प्रकृतिस्थानबन्धसंबन्ध कहे गये हैं । और जीवस्थानके जो सत्प्ररूपणा आदि छह अनुयोगद्वार हैं वे गुणस्थानसंबन्धी कहे गये हैं। ऐसी हालतमें प्रकृतिस्थानबन्धसंबन्धी छह अनुयोगद्वारोंमेंसे जीवस्थान संबन्धी छह अनुयोगद्वारोंका अवतार कैसे हो सकता है ?
समाधान - यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि, इस प्रकृतिस्थानके बन्धक मिथ्यादृष्टि जीव हैं । मिध्यादृष्टि जीव इतने क्षेत्रमें इस प्रकृतिस्थानके बन्धक होते हैं । इस प्रकृतिस्थानके बन्धक मिथ्यादृष्टि जीवोंने इतना क्षेत्र स्पर्श किया है । इस प्रकृतिस्थानके बन्धक मिथ्यादृष्टि जीव उस मिथ्यात्व गुणस्थानको नहीं छोड़ते हुए जघन्यकी अपेक्षा इतने कालतक और उत्कृष्टकी अपेक्षा इतने कालतक मिथ्यात्व गुणस्थानमें रहते हैं। इस प्रकृतिस्थानके बन्धक मिथ्यादृष्टि जीवों का जघन्य अन्तरकाल इतना और उत्कृष्ट अन्तरकाल इतना होता है। इसीतरह शेष गुणस्थानोंका कथन करके फिर उनका अल्पबहुत्व कहा गया है । इसलिये उस प्रकृतिस्थानमें कहे गये छह अनुयोगद्वारोंके साथ जीवस्थानमें कहे गये छह अनुयोगद्वारोंका एकत्व अर्थात् समानता विरोधको प्राप्त नहीं होती है ।
विशेषार्थ - प्रकृतिस्थानबन्ध में सदादि छह अनुयोगोंका प्रकृतिस्थानकी अपेक्षा कथन है और इस जीवस्थानमें प्रकृतिस्थानके बन्धक मिथ्यादृष्टि आदि गुणस्थानोंकी अपेक्षा सदादि छ अनुयोगों का कथन है । इसलिये प्रकृतिस्थानके छह अनुयोगोंमेंसे जीवस्थानके छह अनुयोगों की उत्पत्ति विरोधको प्राप्त नहीं होती है ।
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