Book Title: Shatkhandagama Pustak 01
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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छक्खंडागमे जीवहाणं
[१, १, २. 'एत्तो' एतस्मादित्यर्थः । कस्मात्', प्रमाणात् । कुत एतदवगम्यते ? प्रमाणस्य जीवस्थानस्याप्रमाणादवतारविरोधात् । नाजलात्मकहिमवतो निपतज्जलात्मकगङ्गया व्यभिचारः अवयविनोऽत्रयस्यात्र वियोगापायस्य विवक्षित्वात् । नावयविनोऽवयवो भिन्नो विरोधात् । तदपि प्रमाणं द्विविधं द्रव्यभावप्रमाणभेदात् । द्रव्यप्रमाणात् संख्येया
'एत्तो' अर्थात् इससे। शंका-यहां पर 'एतद् ' पदसे किसका ग्रहण किया है ?
सामधान- यहां पर 'एतद् ' पदसे प्रमाणका ग्रहण किया है, इसलिये 'इससे' अर्थात् 'प्रमाणसे' ऐसा अभिप्राय समझना चाहिये ।
शंका-- यह कैसे जाना, कि यहां पर 'एत्तो' पदका प्रमाणसे' यह अर्थ लिया गया है?
समाधान- क्योंकि, प्रमाणरूप जीवस्थानका अप्रमाणसे अवतार अर्थात् उत्पत्ति नहीं हो सकती है, इससे यह जाना जाता है कि यहां पर 'एत्तो' इस पदमें स्थित 'एतत्' शब्दसे प्रमाणका ग्रहण किया गया है।।
यहां पर यदि कोई यह कहे कि कार्यमें कारणानुकूल ही गुणधर्म पाये जाते हैं, क्योंकि, वह कार्य है। इस अनुमानमें जो कार्यत्वरूप हेतु है, वह प्रमाणरूप कारणसे उत्पन्न हुए प्रमाणात्मक जीषस्थानरूप साध्यमें पाया जाता है, और अजलस्वरूप हिमवान्से उत्पन्न हुई जलात्मक गंगानदीरूप विपक्षमें भी पाया जाता है । अतएव इस कार्यत्वरूप हेतुके पक्षमें रहते हुए भी विपक्षमें चले जानेके कारण व्यभिचार दोष आता है। अतः यह कहना कि प्रमाणरूप जीवस्थानकी उत्पत्ति प्रमाणसे ही हुई है, संगत नहीं है। इस शंकाको मनमें निश्चय करके आचार्य आगे उत्तर देते हैं कि इसतरह अजलात्मक हिमवान्से निकलती हुई जलात्मक गंगानदीसे भी व्यभिचार दोष नहीं आता है, क्योंकि, यहां पर अवयवीसे वियोगापायरूप अथात् अवयवीसे संयोगको प्राप्त हुआ अवयव विवक्षित है। इसका कारण यह है कि अवयवीसे अवयव भिन्न नहीं है, क्योंकि, अवयवासे अवयवको सर्वथा भिन्न मान लेने में विरोध आता है।
विशेषार्थ-यद्यपि हिमषान् पर्वत अजलात्मक है। परंतु उस पर्वतके जिस भागसे गंगा नदी निकली है, वह भाग जलमय ही है। इसलिये यहां पर हिमवान् पर्वतसे उसका जलात्मक अवयव ग्रहण करना चाहिये । इससे, जो पहले व्याभिचार दोष दे आये हैं वह दोष भी नहीं आता है, क्योंकि, यहां पर हिमवान् पर्वतका जलात्मक भाग ही ग्रहण किया गया है, और उससे गंगा नदी निकली है। अतएव इसे विपक्ष न समझकर सपक्ष ही समझना चाहिये। इसतरह सिद्ध हो जाता है कि प्रमाणस्वरूप जीवस्थानकी उत्पत्ति प्रमाणसे ही हुई है।
. द्रव्यप्रमाण और भावप्रमाणके भेदसे वह प्रमाण दो प्रकारका है। द्रव्यप्रमाणकी अपेक्षा शन्द, प्रमातृ और प्रमेयके आलम्बनसे क्रमशः संख्यात, असंख्यात और अनंतरूप द्रव्यजीव
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