________________
१, १, २.] संत-परूवणाणुयोगदारे सुत्तावयरणं
[९३ संख्येयानन्तात्मकद्रव्यजीवस्थानस्यावतारः । भावप्रमाणं पञ्चविधम्, आमिणिबोहियभावपमाणं, सुदभावपमाणं ओहिभावपमाणं मणपजवमावपमाणं केवलभावपमाणं चेदि।।
तत्थ आभिणिबोहियणाणं णाम पंचिंदिय-णोइंदिएहि मदिणाणावरण-खयोवसमेण य जणिदोवग्गहेहावाय-धारणाओ सद्द-परिस-रस-रूव-गंध-दिह-सुदाणुभूद-विसयाओ बहुबहुविह-खिप्पाणिस्सिदाणुत्त-धुवेदर-भेदेण ति-सय-छत्तीसाओ। सुदणाणं णाम मदि-पुत्वं मदिणाण-पडिगहियमत्थं मोत्तूणण्णत्थम्हि वावदं सुदणाणावरणीय-क्खयोवसम-जणिदं । ओहिणाणं णाम दव-खेत-काल माव-वियप्पियं पोग्गल-दव्वं पञ्चक्खं जाणदि । दव्यांदो जहण्णेण जाणतो एय जीवस्स ओरालिय-सरीर-संचयं लोगागास-पदेस-मेत्त खंडे कदे तत्थेय-खंडं जाणदि । उक्कस्तेणेग-परमाणुं जाणदि । दोण्हमंतरालमजहण्णमणुकस्सोही जाणदि । खेत्तदो जहण्णेणंगुलस्स असंखेजदि-भागं जाणदि । उक्कस्सेण असंखेज्ज-लोगमेत्त-खेत्तं जाणदि । दोण्हमंतरालमजहण्णमणुकस्सोही जाणदि । कालदो
स्थानका अवतार हुआ है। भावप्रमाणके पांच भेद हैं, आमिनिबोधिकभावप्रमाण, श्रुतभावप्रमाण, अवधिभावप्रमाण, मनःपर्ययभावप्रमाण और केवलभावप्रमाण ।
। उनमें पांच द्रव्येन्द्रिय और द्रव्यमनके निमित्तसे तथा मतिमानावरण कर्मके भयोपशमसे पैदा हुआ, अवग्रह, ईहा, अवाय और धारणारूप, शब्द, स्पर्श, रस, रूप, गन्ध और इषु, श्रुत तथा अनुभूत पदार्थको विषय करनेवाला और बहु, बहुविध, क्षिप्र, अनिःसृत अनुक्त, धुव, एक, एकविध, अक्षिप्र, निःसत, उक्त और अध्रुवके भेदसे तीनसौ छत्तीस भेदरूप आभिनिबोधिक मातशान होता है।
जिस शानमें मतिज्ञान कारण पड़ता है, जो मतिज्ञानसे ग्रहण किये गये पदार्थको छोड़कर तत्संबन्धित दूसरे पदार्थमें व्यापार करता है और श्रुतशानावरण कर्मके भयोपशमसे उत्पन्न होता है उसे श्रुतज्ञान कहते हैं।
द्रव्य, क्षेत्र, काल और भावके विकल्पसे अनेक प्रकारके पुलद्रव्यको जो प्रत्यक्ष जानता है उसे अवधिज्ञान कहते हैं। यह शान द्रव्यकी अपेक्षा जघन्यरूपसे जानता हुआ एक जीवके औदारिक शरीरके संचयके लोकाकाशके प्रदेशप्रमाण खण्ड करने पर उनमेंसे एक खण्ड तकको जानता है। उत्कृष्टरूपसे, अर्थात् उत्कृष्ट अवधिशान एक परमाणुतकको जानता है। अजघन्य और अनुत्कृष्ट अर्थात् मध्यम अवधिज्ञान, जघन्य और उत्कृष्टके अन्तरालगत द्रव्य. भेदोंको जानता है। क्षेत्रकी अपेक्षा अवधिज्ञान जघन्यसे अंगुल, अर्थात् उत्सधांगुलके असंख्यातवें भागतक क्षेत्रको जानता है। उत्कृष्ठसे असंख्यात लोकप्रमाणतक क्षेत्रको जानता है। अजघन्य और अनुत्कृष्ट (मध्यम) अवधिज्ञान जघन्य और उत्कृष्टके अन्तरालगत क्षेत्रभेदोंको जानता है। अवधिज्ञान कालकी अपेक्षा जघन्यसे आवलीके असंख्यातवें भागप्रमाण भूत और भविष्यत् पर्यायोंको जानता है। उत्कृष्टसे असंख्यात लोकप्रमाण समयोंमें स्थित अतीत और
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org