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४२) छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[१, १, १. मुत्तत्त-विरोहादो । अह मंगलं, किं तत्थ मंगलेण एगदो चेय कज-णिप्पत्तीदो इदि । ण ताव सुत्तं ण मंगलमिदि ? तारिस-पइज्जाभावादो परिसेसादो मंगलं स । सुत्तस्सादीए मंगलं पढिज्जदि, ण पुव्वुत्तदोसो वि दोण्हं पि पुध पुध विणासिज्जमाण-पाव-दंसणादो । पढण-विग्घ-विद्दावणं मंगलं । सुत्तं पुण समयं पडि असंखेज्ज-गुण-सेढीए पावं गालिय पच्छा सव्व-कम्म-क्खय-कारणमिदि । देवतानमस्कारोऽपि चरमावस्थायां कृत्स्नकर्मक्षयकारीति द्वयोरप्येककार्यकर्तृत्वमिति चेन्न, सूत्रविषयपरिज्ञानमन्तरेण तस्य तथाविधसामर्थ्याभावात् । शुक्लध्यानान्मोक्षः, न च देवतानमस्कारः शुक्लध्यानमिति ।
इदाणिं देवदा-णमोकार-सुत्तस्सत्थो उच्चदे । ' णमो अरिहंताणं " अरिहननादरिहन्ता । नरकतिर्यकुमानुष्य
उसका सूत्रपनेसे विरोध पड़ जाता है। और यदि सूत्र स्वयं मंगलरूप है, तो फिर उसमें अलगसे मंगल करनेकी क्या आवश्यकता है, क्योंकि, मंगलरूप एक सूत्र-ग्रन्थसे ही कार्यकी निष्पत्ति हो जाती है ? और यदि कहा जाय कि यह सूत्र नहीं है, अतएव मंगल भी नहीं है, तो ऐसा तो कहीं कहा नहीं गया कि यह सूत्र नहीं है। अतएव यह सूत्र है और परिशेष न्यायसे मंगल भी है । तब फिर इसमें अलग से मंगल क्यों किया गया?
समाधान-सूत्र के आदि में मंगल किया गया है तथापि पूर्वोक्त दोष नहीं आता है, क्योंकि, सूत्र और मंगल इन दोनों से पृथक् पृथक् रूपमें पापोंका विनाश होता हुआ देखा जाता है।
निबद्ध और अनिबद्ध मंगल पठनमें आनेवाले विघ्नोंको दूर करता है, और सूत्र, प्रतिसमय असंख्यात-गुणित-श्रेणीरूपसे पापोका नाश करके उसके बाद संपूर्ण कर्मों के क्षयका कारण होता है
__ शंका-देवता-नमस्कार भी अन्तिम अवस्थामें संपूर्ण कर्मोंका क्षय करनेवाला होता है, इसलिये मगल और सूत्र ये दोनों ही एक कार्यको करनेवाले हैं। फिर दोनोंका कार्य भिन्न भिन्न क्यों बतलाया गया है ?
समाधान-ऐसा नहीं है, क्योंकि, सूत्रकथित विषयके परिज्ञानके विना केवल देवता-नमस्कारमें कर्मक्षयकी सामर्थ्य नहीं है। मोक्षकी प्राप्ति शुक्लध्यानसे होती है, परंतु देवतानमस्कार तो शुक्लध्यान नहीं है।
' विशेषार्थ-शास्त्रज्ञान शुक्लध्यानका साक्षात् कारण है और देवता-नमस्कार परंपरा कारण है, इसलिये दोनोंके अलग अलग कार्य बतलाये गये हैं।
अब देवता-नमस्कार सूत्रका अर्थ कहते हैं । ' णमो अरिहंताणं' अरिहंतोंको नमस्कार हो । अरि अर्थात् शत्रुओंके 'हननात् ' अर्थात् नाश करनेसे 'अरिहंत ' यह संक्षा प्राप्त होती
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