Book Title: Shatkhandagama Pustak 01
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१, १, १.] संत-परूवणाणुयोगद्दारे सुत्तावयरणं
[८३ . णिक्खेवो चउबिहो णाम-ढवणा-दव्य-भाव-जीवाण-भेएण । णाम-जीवट्ठाणं जीवट्ठाण-सदो । ढवण-जीवाणं बुद्धीए समारोविय-जीवट्ठाण-दव्यं । दव्व-जीवहाणं दुविहं आगम-गोआगम-भेएण। तत्थ जीवट्ठाण-जाणओ अणुवजुत्तो आगम-दव्वजीवट्ठाणं । णोआगम-दव्य-जीवहाणं तिविहं जाणुगसरीर-भविय-तव्वदिरित्त-णोआगमदव्य-जीवट्ठाण-भेएण । आदिल्ल-दुर्ग सुगम । तव्वदिरित्तं जीवहाणाहार-भूदागास-दव्वं । भाव-जीवट्ठाणं दुविहं आगम-णोआगम-भेएण। आगम-भाव-जीवाणं जीवहाण-जाणओ उवजुत्तो। णोआगम-भाव-जीवाणं मिच्छाइटियादि-चोद्दस-जीव-समासा । एत्थ णोआगम-भाव-जीवहाणं पयदं । णिक्खेवो गदो ।
___ नयैर्विना लोकव्यवहारानुपपत्तेर्नया उच्यन्ते । तद्यथा, प्रमाणपरिगृहीतार्थैकदेशे वस्त्वध्यवसायो नयः । स द्विविधः, द्रव्यार्थिकः पर्यायार्थिकश्चेति । द्रोष्यत्यदुद्रुवत्तांस्तान्पर्यायानिति द्रव्यम्', द्रव्यमेवार्थः प्रयोजनमस्येति द्रव्यार्थिकः ।
नामजीवस्थान, स्थापनाजीवस्थान, द्रव्यजीवस्थान और भावजीवस्थानके भेदसे निक्षेप चार प्रकारका है। 'जीवस्थान' इसप्रकारकी संज्ञाको नामजीवस्थान कहते हैं । जिस द्रव्यमें बुद्धिसे जीवस्थानकी आरोपणा की हो उसे स्थापनाजीवस्थान कहते हैं। आगमजीवस्थान और नोआगमजीवस्थानके भेदसे द्रव्यजीवस्थान दो प्रकारका है। उनमें, जीवस्थान शास्त्रके जाननेवाले किन्तु वर्तमानमें उसके उपयोगसे रहित जीवको आगमद्रव्यजीवस्थान कहते हैं। सायकशरीर, भावि और तद्वयतिरिक्तके भेदसे नोआगमद्रव्यजीवस्थान तीन प्रकारका है। इनमेंसे, आदिके दो अर्थात् ज्ञायकशरीर और भावि सुगम हैं। जीवस्थानोंके अथवा जीवस्थान शास्त्रके आधारभूत आकाशद्रव्यको तद्व्यतिरिक्तनोआगमद्रव्यजीवस्थान कहते हैं । आगम और नोआगमके भेदसे भावजीवस्थान दो प्रकारका है । जीवस्थान शास्त्रके जाननेवाले और वर्तमानमें उसके उपयोगसे युक्त जीवको आगमभावजीवस्थान कहते हैं। और मिथ्यादृष्टि आदि चौदह जीवसमासको नोआगमभावजीवस्थान कहते हैं। इनमेंसे, इस जीवस्थान शास्त्र में मोआगमभावजीवस्थान निक्षेप प्रकृत है । इसतरह निक्षेपका वर्णन हुआ। - नयोंके विना लोकव्यवहार नहीं चल सकता है, इसलिये यहां पर नयोंका वर्णन करते हैं । इन नयोंका खुलासा इसप्रकार है, प्रमाणके द्वारा ग्रहण की गई वस्तुके एक अंशमें वस्तुका निश्चय करनेवाले ज्ञानको नय कहते हैं। वह नय द्रव्यार्थिक और पर्यायार्थिकके भेदसे दो प्रकारका है । जो भविष्यत् पर्यायोंको प्राप्त होगा और भूत पर्यायों को प्राप्त हुआ था उसे द्रव्य
१ अनिराकृतप्रतिपक्षो वस्त्वंशग्राही ज्ञातुरभिप्रायो नयः । प्र. क. मा. पृ. २०५.
२ द्रव्यं सामान्यमभेदोऽन्वय उत्सोऽथों विषयो येषां ते द्रव्यार्थिकाः। पर्यायो विशेषो भेदो व्यतिरेकोड पवादोऽर्थो विषयो येषां ते पर्यायार्थिकाः । लघीय. पृ. ५१.
३ द्रवति गच्छति तास्तान् पर्यायान् द्रूयते गम्यते तैस्तैः पर्यायैरिति वा द्रव्यम् । जयध. अ, पृ. २६. निजनिजप्रदेशसभूहैरखण्डवृत्त्या स्वभावविभावपर्यायान् द्रवति द्रोन्यत्यदुद्रुवच्चेति द्रव्यम् । आ. प. ८७.
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