Book Title: Shatkhandagama Pustak 01
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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३८] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[१, १, १. तयो केवलज्ञानदर्शनाङ्करयोर्मलत्वे मिथ्यादृष्टिरपि मङ्गलं तत्रापि तौ स्त इति चेद्भवतु तद्रूपतया मङ्गलम्, न मिथ्यात्वादीनां मङ्गलम् । तन्न मिथ्यादृष्टयः सुगतिभाजः सम्यग्दर्शनमन्तरेण तज्ज्ञानस्य सम्यक्त्वाभावतस्तदभावात् । कथं पुनस्तज्ज्ञानदर्शनयोर्मङ्गलस्वमिति चेन्न, सम्यग्दृष्टीनामवगताप्तस्वरूपाणां केवलज्ञानदर्शनावयवत्वेनाध्यवसितरजोजुज्ञानदर्शनानामावरणविविक्तानन्तज्ञानदर्शनशक्तिखचितात्मस्मर्तृणां वा पापश्यकारित्वतस्तयोस्तदुपपते । नोआगमभव्यद्रव्यमालापेक्षया वा मङ्गलमनायपर्यवसानमिति । रत्नत्रयमुपादायाविनष्टेनैवाप्तसिद्धस्वरूपापेक्षया नैगमनयेन साद्यपर्यवसितं मालम् ।
विशेषका नाम चक्षुदर्शनादि है। यथार्थमें इन सब अवस्थाओंमें रहनेवाले ज्ञान और दर्शन एक ही है।
शंका-केवलज्ञान और केवलदर्शनके अंकुररूप छद्मस्थोंके शान और दर्शनको मंगलरूप मान लेने पर मिथ्यादृष्टि जीव भी मंगल संज्ञाको प्राप्त होता है, क्योंकि, मिथ्यादृष्टि जीवमें भी वे अंकुर विद्यमान हैं?
समाधान- यदि ऐसा है तो भले ही मिथ्यादृष्टि जीवको शान और दर्शनरूपसे मंगलपना प्राप्त हो, किंतु इतनेसे ही मिथ्यात्व, अविरति आदिको मंगलपना प्राप्त नहीं हो सकता है। और इसलिये मिथ्यादृष्टि जीव सुगतिको प्राप्त नहीं हो सकते हैं, क्योंकि, सम्यग्दर्शनके विना मियादृष्टियों के शानमें समीचीनता नहीं आ सकती है। तथा समीचीनताके विना उन्हें सुगति नहीं मिल सकती है। . शंका-फिर मिथ्याष्टियोंके ज्ञान और दर्शनको मंगलपना कैसे है ?
समाधान-ऐसी शंका नहीं करनी चाहिये, क्योंकि, आप्तके स्वरूपको जाननेवाले, छमस्के शान और दर्शनको केवलज्ञान और केबलदर्शनके अषयवरूपसे निश्चय करनेवाले और आवरण-रहित अनम्तज्ञान और अनन्तदर्शनरूप शक्तिसे युक्त आत्माका स्मरण करनेवाले सम्यग्दृष्टियों के ज्ञान और दर्शनमें जिसप्रकार पापका क्षयकारीपना पाया जाता है, उसी प्रकार मिथ्यादृष्टियों के ज्ञान और दर्शनमें भी पापका क्षयकारीपना पाया जाता है। इसलिये मिथ्याहष्टियोंके ज्ञान और दर्शनको भी मंगल मानने में विरोध नहीं है। अथवा, नोआगमभाविद्रव्य. मंगलकी अपेक्षा मंगल अनादि-अनंत है।
विशेषार्थ-जो आत्मा वर्तमानमें मंगलपर्यायसे युक्त तो नहीं है, किंतु भविष्यमें मंगलपर्यायसे युक्त होगा। उसके शक्तिकी अपेक्षासे अनादि-अनम्तरूप मंगलपना बन जाता है।
रत्नत्रयको धारण करके कभी भी नष्ट नहीं होनेवाले रत्नमयके द्वारा ही प्राप्त हुए सिद्ध के स्वरूपकी अपेक्षा नैसमन्यसे मंगल सादि-अनंत है।.....
विशेषार्थ- याली प्राप्तिसे सादिपना और रखत्रय प्राप्तिके अनंतर लिख स्वक
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