Book Title: Shatkhandagama Pustak 01
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१, १, १.] संत-परूवणाणुयोगद्दारे मंगलायरणं
[३७ न भस्मच्छन्नाग्निना व्यभिचारः तापप्रकाशयोस्तत्राप्युपलम्भात् । पर्यायत्वात्केवलादीनां न स्थितिरिति चेन्न, अत्रुट्यज्ज्ञानसंतानापेक्षया तत्स्थैर्यस्य विरोधाभावात् । न छद्मस्थज्ञानदर्शनयोरल्पत्वादमङ्गलत्वमेकदेशस्य माङ्गल्याभावे तद्विश्वावयवानामप्यमङ्गलत्वप्राप्तेः । रजोजुषां ज्ञानदर्शने न मङ्गलीभूतकेवलज्ञानदर्शनयोरवयवाविति चेन्न, ताभ्यां व्यतिरिक्तयोस्तयोरसत्वात् । मत्यादयोऽपि सन्तीति चेन्न, तदवस्थानां मत्यादिव्यपदेशात् ।
हो ऐसा नहीं देखा जाता । किंतु प्रत्यक्षादि प्रमाणोंसे भी उसकी उपलब्धि होती ही है। - यहां पर भस्मसे ढकी हुई अग्नि के साथ व्यभिचार दोष भी नहीं आता है, क्योंकि, ताप और प्रकाश की वहां पर भी उपलब्धि होती है।
विशेषार्थ-आवृत अवस्थामें भी केवलज्ञानादि पाये जाते हैं, क्योंकि, वे जीवके गुण हैं, यदि इस अवस्थामें उनका अभाव माना जावे तो जीवका भी अभाव मानना पड़ेगा। इस अनुमानको ध्यानमें रखकर शंकाकारका कहना है कि इस तरह तो भस्मसे ढकी हुई अग्निसे व्यभिचार हो जावेगा, क्योंकि, भस्माच्छादित अग्निमें अग्निरूप द्रव्यका सद्भाव तो पाया जाता है, किंतु उसके धर्मरूप ताप और प्रकाशका सद्भाव नहीं पाया जाता है। इसतरह हेतु विपक्षमें चला जाता है, अतएव वह व्याभिचरित हो जाता है । इसप्रकार शंकाकारका भस्मसे ढकी हुई अग्निके साथ व्यभिचारका दोष देना ठीक नहीं है, क्योंकि, राखसे ढकी हुई अग्निमें भी उसके गुणधर्म ताप और प्रकाशकी उपलब्धि अनुमानादि प्रमाणोंसे बराबर होती है।
शंका-केवलज्ञानादि पर्यायरूप हैं, इसलिये आवृतअवस्थामें उनका सद्भाव नहीं बन सकता है ?
समाधान-यह शंका भी ठीक नहीं है, क्योंकि, कभी भी नहीं टूटनेवाली ज्ञानसंतानकी अपेक्षा केवलज्ञानके सद्भाव मान लेने में कोई विरोध नहीं आता है। .. छगस्थ अर्थात् अल्पज्ञानियोंके ज्ञान और दर्शन अल्प होनेमात्रसे अमंगल नहीं हो सकते हैं, क्योंकि, शान और दर्शनके एकदेशमें मंगलपनेका अभाव स्वीकार कर लेने पर ज्ञान
और दर्शनके संपूर्ण अवयवोंको भी अमंगल मानना पड़ेगा। - शंका - आवरणसे युक्त जीवोंके शान और दर्शन मंगलीभूत केवलज्ञान और केवलदर्शनके अवयव ही नहीं हो सकते हैं ?
समाधान-ऐसा कहना ठीक नहीं है, क्योंकि, केवलज्ञान और केवलदर्शनसे भिन्न झान और दर्शनका सद्भाव नहीं पाया जाता है।
शंका-केवलझान और केवलदर्शनसे अतिरिक्त मतिज्ञानादि शान और चक्षुदर्शन आदि दर्शन तो पाये जाते हैं। इनका अभाव कैसे किया जा सकता है ? .
समाधान-उस ज्ञान और दर्शनसंबन्धी अवस्थाओंकी मतिज्ञानादि और चक्षुदर्शनादि नाना संसाएं हैं। अर्थात् बानगुणकी अवस्थाविशेषका नाम मत्यादि और दर्शनगुणकी अवस्था
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