Book Title: Shatkhandagama Pustak 01
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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(५१)
सका जिससे उक्त टीकाका पता चलता । श्रुतावतार के ' आसन्ध्यां पलरि ' पाठमें संभवतः आचार्यके निवासस्थानका उल्लेख है, किन्तु पाठ अशुद्धसा होनेके कारण ठीक ज्ञात नहीं होता ।
जिनसेनाचार्यकृत हरिवंशपुराण में समन्तभद्रनिर्मित 'जीवसिद्धि' का उल्लेख आया है, किंतु यह ग्रंथ अभीतक मिला नहीं है । कहीं यह समन्तभद्रकृत ' जीवहाण' की टीकाका ही तो उल्लेख न हो ! समन्तभद्रकृत गंधहस्तिमहाभाष्यके भी उल्लेख मिलते हैं, जिनमें उसे तत्वार्थ या तत्वार्थ सूत्रका व्याख्यान कहा है । इस परसे माना जाता है कि समन्तभद्र यह भाष्य उमास्वातिकृत तत्त्वार्थसूत्रपर लिखा होगा । किंतु यह भी संभव है कि उन उल्लेखोंका अभिप्राय समन्तभद्रकृत इन्हीं सिद्धान्तग्रंथों की टीकासे हो । इन ग्रन्थोंकी भी ' तत्वार्थमहाशास्त्र ' नामसे प्रसिद्धि रही है, क्योंकि, जैसा हम ऊपर कह आये हैं, तुम्बुलूराचार्यकृत इन्हीं ग्रन्थोंकी 4 चूडामणि ' टीकाको अकलंकदेवने तत्त्वार्थमहाशास्त्र व्याख्यान कहा है ।
इन्द्रनन्दिने कहा है कि समन्तभद्र स्वामी द्वितीय सिद्धान्तकी भी टीका लिखनेवाले थे, किन्तु उनके एक सधने उन्हें ऐसा करनेसे रोक दिया । उनके ऐसा करनेका कारण द्रव्यादिशुद्धिकरण - प्रयत्नका अभाव बतलाया गया है। संभव है कि यहां समन्तभद्रकी उस भस्मक व्याधिकी ओर संकेत हो, जिसके कारण कहा गया है कि उन्हें कुछ काल अपने मुनि आचारका अतिरेक करना पड़ा था । उनके इन्हीं भावों और शरीर की अवस्थाको उनके सहधर्मीने द्वितीय सिद्धान्त ग्रन्थकी टीका लिखनेमें अनुकूल न देख उन्हें रोक दिया हो ।
यदि समन्तभद्रकृत टीका संस्कृतमें लिखी गई थी और वीरसेनाचार्य के समय तक, विद्यमान थी तो उसका धरला जयववलामें उल्लेख न पाया जाना बडे आश्वर्यकी बात होगी । सिद्धान्तप्रन्थों का व्याख्यानक्रम गुरु परम्परासे चलता रहा । इसी परम्परामै शुभनन्दि
हरिवंशपुराण. १. ३०.
१. देखो, पं. जुगलकिशोर मुख्तारकृत समन्तभद्र पृ. २१२. २ जीवसिद्धिविधायीह कृतयुक्त्यनुशासनम् । वचः समन्तभद्रस्य वीरस्येव विजृंभते ॥ ३ तत्वार्थ सूत्रव्याख्या नगन्यहस्तिप्रवर्तकः । स्वामी समन्तभद्रोऽभूद्देवागम निदेशकः || (हस्तिम. विक्रान्त कौरवनाटक, मा. मं. मा. ) तत्वार्थ व्याख्यान - षण्णवति सहस्र-गंधहस्ति-महाभाग्य-विधायक देवागम- कवीश्वर स्याद्वाद - विद्याधिपति- समन्तभद्र ( एक प्राचीन कनाड़ी ग्रन्थ, देखो समन्तभद्र. पू. २२० ) श्रीमत्तस्वार्थशास्त्राद्भुत सलिलनिधेरिद्धरलोद्भवस्य । प्रोःथानारम्भकाले सकलमलभिदे शास्त्रकारैः कृतं यत् । ( विद्यानन्द. आप्तमीमांसा )
४ विलिखन् द्वितीयसिद्धान्तस्य व्याख्यां सधर्मणा स्त्रेन | द्रव्यादिशुद्धिकरण प्रयत्नविरहात् प्रतिषिद्धम् || १७० || इन्द्र. श्रुतावतार.
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