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सिरि-भगवंत - पुप्फदंत भूदबलि-पणीदे
छक्खंडागमे
जीवाणं
तस्स
सिरि-वीरसेणाइरिय - विरइया टीका
धवला
सिद्धमणंत मणिदियमणुवममप्पुत्थ- सोक्खमणवजं । केवल-पहोह - णिजिय-दुण्णय तिमिरं जिणं णमह ॥ १ ॥
जो सिद्ध हैं, अनन्त-स्वरूप हैं, अनिन्द्रिय हैं, अनुपम हैं, आत्मोत्पन्न सुखको प्राप्त हैं, अनवद्य अर्थात् निर्दोष हैं, और जिन्होंने केवलज्ञानरूप सूर्यके प्रभापुंज से कुनयरूप अन्धकारको जीत लिया है, ऐसे जिन भगवान्को नमस्कार करो। अथवा, जो अनन्त-स्वरूप हैं, अनिन्द्रिय हैं, अनुपम हैं, आत्मोत्पन्न सुखको प्राप्त हैं, अनवद्य अर्थात् निर्दोष हैं, जिन्होंने केवलज्ञानरूप सूर्यके प्रभा-पुंजसे कुनयरूप अन्धकारको जीत लिया है, और जो समस्तकर्म-शत्रुओं के जीतने से 'जिन' संज्ञाको प्राप्त हैं, ऐसे सिद्ध परमात्माको नमस्कार करो ।
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