Book Title: Shatkhandagama Pustak 01
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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२६] लक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[१, १, १. घादेण अचत्त-भावेण पदिद-सरीरं चुदं णाम । जीविद-मरणासाहि विणा सरूवोवलद्धिणिमित्तं व चत्त-बझंतरंग-परिग्गहस्स कयली-घादेणियरेण वा पदिद-सरीरं चत्त-देहमिदि ।
___ भव्यनोआगमद्रव्यं भविष्यत्काले मङ्गलप्राभृतज्ञायको जीवः मङ्गल-पर्यायं परिणस्यतीति वा । तद्व्यतिरिक्तं द्विविधं कर्मनोकर्ममङ्गलभेदात् । तत्र कर्षमङ्गलं दर्शन-विशुद्धयादि-पोडशधा-प्रविभक्त-तीर्थकर-नामकर्म-कारणैर्जीव-प्रदेश-निबद्ध-तीर्थकरनामकर्म-माङ्गल्य-निवन्धनत्वान्मङ्गलम् । यत्तन्नोकर्ममङ्गलं तद् द्विविधम्, लौकिकं लोकोत्तर
घात व समाधिमरणसे रहित होकर छूटे हुए शरीरको च्युत कहते हैं। आत्म-स्वरूपकी प्राप्तिके निमित्त, जिसने बहिरंग और अन्तरंग परिग्रहका त्याग कर दिया है ऐसे साधुके जीवन और मरणकी आशाके बिना ही कदलीघातसे अथवा इतर कारणोंसे छूटे हुए शरीरको त्यक्तशरीर कहते हैं।
विशेषार्थ- ऊपर बतलाये गये च्युत, च्यावित और त्यक्तके स्वरूप पर ध्यान देनेसे यह भर्ल प्रकार विदित हो जाता है कि संयम-विनाशके भयसे श्वासोच्छासका निरोध करके छूटे हुए साधुके शरीरका च्यावितमें ही अन्तर्भाव होता है, क्योंकि, च्यावित मरणमें कदलीघातकी प्रधानता है। और श्वासोच्छासका स्वयं निरोध करके मरना कदलीघातमरण है। उसमें समाधिका सद्भाव नहीं रह सकता है, इसलिये ऐसे मरणका त्यक्तके किसी भी भेदमें ग्रहण नहीं किया जा सकता है। यद्यपि किसी त्यक्तमरणमें कदलीघात भी निमित्त पड़ता है। परंतु वहांपर कदलीघातसे, परकृत उपसदि निमित्तोंका ही ग्रहण किया गया है, स्वकृत श्वासोच्छासनिरोध आदि आत्मघातके साधन विवक्षित नहीं हैं।
जो जीव भविष्यकालमें मंगल-शास्त्रका जाननेवाला होगा, अथवा मंगलपर्यायसे परिणत होगा उसे भव्यनोआगमद्रव्यमंगलनिक्षेप कहते हैं।
विशेषार्थ-शायकशरीरके तीन भेद किये हैं। उसका एक भेद भावी भी है। परंतु उससे इस भावीको भिन्न समझना चाहिये, क्योंकि, नायकशरीरके भावी विकल्पमें ज्ञाताके आगे होनेवाले शरीरको ग्रहण किया है, और यहांपर भविष्यमें होनेवाला तद्विषयक शास्त्रका शाता ग्रहण किया है।
कर्मतव्यतिरिक्तद्रव्यमंगल और नोकर्मतव्यतिरिक्तद्रव्यमंगलके भेदसे तद्व्यतिरिक्तनोआगमद्रव्यमंगल दो प्रकारका है। उनमें दर्शनविशुद्धि आदि सोलह प्रकारके तीर्थकर नामकर्मके कारणोंसे जीवके प्रदेशोंसे बंधे हुए तीर्थकर नामकर्मको कर्मतव्यतिरिक्तनोआगमद्रव्यमंगल कहते हैं, क्योंकि, वह भी मंगलपनेका सहकारी कारण है।
नोकर्मतद्व्यतिरिक्तनोआगमद्रव्यमंगल दो प्रकारका है । एक लौकिक नोकर्मतद्व्यतिरिक्तनोआगमद्रव्यमंगल और दूसरा लोकोत्तर नोकर्मतव्यातीरक्तनोआगम द्रव्यमंगल।
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