Book Title: Shatkhandagama Pustak 01
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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(८०) उदाहरण:
कोहाइ माणं हणिया य वीरे लोभस्स पासे निरयं महंतं ।
तम्हा हि वीरे विरओ वहाओ छिंदेज सोयं लहुभूयगामी ॥ ( आचारांग)
क्रोधादि व मान का हनन करके महावीरने लोभके महान् पाशको तोड़ डाला । इस प्रकार वीर वधसे विरत होकर भूतगामी शोकका छिन्दन करें ।
सुसाणंसि वा सुन्नागारोंसि वा गिरिगुहंसि वा रुक्खमूलम्मि वा । (आचारांग) श्मशानमें या शून्यागारमें या गिरिगुफामें व वृक्षके मूलमें ( साधु निवास करे )
ये मागधीकी वृत्तियां अर्धमागधीमें भी धीरे धीरे कम होती गईं हैं। प्राचीन शूरसेन अर्थात् मथुराके आसपासके प्रदेशकी भाषाका नाम शौरसेनी है । और वैयाकरणोंने इस भाषाका जैसा स्वरूप बतलाया है वैसा संस्कृत नाटकोंमें कहीं
" कहीं मिलता है, पर इसका स्वतंत्र साहित्य दिगम्बर जैन ग्रंथोंमें ही पाया जाता है। प्रवचनसारादि कुंदकुंदाचार्यके. ग्रंथ इसी प्राकृतमें हैं। कहा जा सकता है कि यह दिगम्बर जैनियोंकी मुख्य प्राचीन साहित्यिक भाषा है । किन्तु इस भाषाका रूप कुछ विशेषताओंको लिये हुए होनेसे उसका वैयाकरणोंकी शौरसेनीसे पृथक् निर्देश करनेके हेतु उसे 'जैन शौरसेनी' कहनेका रिवाज हो गया है । जैसा कि आगे चलकर बतलाया जायगा, प्रस्तुत ग्रंथकी प्राकृत मुख्यतः यही है।
शौरसेनीकी विशेषताएं ये हैं कि उसमें र का ल कचित् ही होता है, तीनों सकारों के स्थानपर स ही होता है, और कर्ताकारक पुल्लिंग एकवचनमें ओ होता है। इसकी अन्य विशेषताएं ये हैं कि शब्दोंके मध्यमें त के स्थानपर द, थ के स्थानपर ध, भ के स्थानपर कहीं कहीं है और पूर्वकालिक कृदन्तके रूप संस्कृत प्रत्यय त्वा के स्थानपर ता, इअ या दृण होता है । जैसे
सुतः-सुदो; भवति-भोदि या होई; कथम्-कधं; कृत्वा-करित्ता, करिअ, करिद्ण; आदि उदाहरण--
रत्तो बंधदि कम्मं मुच्चदि कम्मेहिं राग-रहिदप्पा । एसो बंधसमासो जीवाणं जाण णिच्छयदो ॥ प्रवच. २, ८७. णो सद्दहति सोक्खं सुहेसु परमं ति विगद-धादीण । सुणिदूण ते अभव्वा भव्वा वा तं पडिच्छंति ॥ प्रवच. १. ६२.
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