Book Title: Shatkhandagama Pustak 01
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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पृष्ठ
८
२३
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२५
२६
३२
३४
३५
४०
33
४७
५५
६ लहु-पारया
२ गुणकृत
४८ [हिं] ६ जो पुरुषाकार
५६
५९
७०
35
33
८२
९४
९७
पंक्ति अशुद्धि
४ साहूणं ॥१॥
२ ॥ इदि ।
४ चात्तमिदि
१०१
१०७
७ एवं
३ मङ्गल
५ विनाशयति
६ सव्वे
२ मङ्गलम् ?
५ फल पावेंतु
१ ' भोयण - वेलाए सेंधवमाणि
५ अभ्युदय - श्रेयसम्
६ पवयणादो
४ अहिय क्खरा
विहीण खरा
55
६ -हिय - खराणं
१० सा
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शुद्धि
पृष्ठ पंक्ति
अशुद्धि
साहूणं ॥ १ ॥ इदि | | ११४ १ लक्ख छायाल ॥ १२ ॥ इदि । ११५ (टि.) २ वर्णयति
चत्तमिदि
एदं
शुद्धिपत्र
मङ्गल
विनाशयति घात
लहु पारया गुणकृत जो सब अवयवसे पुरुषाकार भोयण - वेलाए 'सैंधवमणि
अभ्यद नैःश्रेयसम् पवयणदो अहियक्खरा
विहीणक्खरा
हियक्खराणं
तत्थ सा
पुधत्तं,
पुरिसे
यति
सव्य
:"
35
मङ्गलम् ? जीवस्य १२५ ४ पयडी सुबंधणे
फलं हि पावेंतु
१२७ १० तेवीसदिमादो
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६ धत्तं ।
३ पुरिसं
८ छप्पण्ण सहस्स छप्पण्ण-सहस्स
६ पण्णारह-लक्खा पण्णारह लक्खा वे सहसं वे सहस्सं
१२३ १० पुव्वत्तादो
अवरत्तादो
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११ पुव्वत्तादो
अवरतादो
93
१३३ १ - विरुद्ध स १५६ ६ कथं
२२६ ३ -स्थानेषु २२७ ६ यत्परिमणा
२६४ ५ ग्राह्या
२६९ ५ बनस्पति
| २७७ ४ - निवधन
२८०
७ ॥ १५३ ॥
२८१
२ ॥ १५४ ॥
२८२
४ ॥ १५५ ॥
२८६
९ ॥ १५६ ॥
११ ॥ १५७ ॥
"
३ वाङ्मनसो -
३०५ ३०८ ९ वाङ्मनोभ्या
| ३१०
५
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33
शुद्धि
लक्ख छायाल
वर्णयति । गो. जी.
जी. प्र. टी. ३६६ पुव्र्वतादो
अवरतादो
पुव्वतादो
अवरतादो
पयडीसु बंधणे तेवसिदिमादो
भावादो
-विरुद्धः । स
कध
-स्थानेषु मार्गणा
यत्परिमाण
ग्राह्याः वनस्पति
- निबन्धन
॥ १५५ ॥
॥ १५६ ॥
॥ १५७ ॥
॥ १५८ ॥
॥ १५९ ॥
वाङ्मनसयो
वाङ्मनसाभ्या
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