Book Title: Shatkhandagama Pustak 01
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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(६६) ९ स्वामित्व, १० वेदना, ११ गति, १२ अनन्तर, १३ सन्निकर्ष, १४ परिमाण, १५ भागाभागानुगम और १६ अल्पबहुत्वानुगम, इन सोलह अधिकारों के द्वारा वेदनाका वर्णन है ।
___ इस खंडका परिमाण सोलह हजार पद बतलाया गया है। यह समस्त खंड अ. प्रतिके ६६७ ३ पत्रसे प्रारम्भ होकर ११०६ वें पत्रपर समाप्त हुआ है, जहां कहा गया है
एवं वेयण-अप्पाबहुगाणिओगद्दारे समत्ते वेयणाखंडं समत्ता (खंडो समत्तो)। पांचवें खंडका नाम वर्गणा है । इसी खंडमें बंधनीयके अन्तर्गत वर्गणा अधिकारके ....... अतिरिक्त स्पर्श, कर्म, प्रकृति और बन्धनका पहला भेद बंध, इन अनुयोगद्वारोंका भी
अन्तर्भाव कर लिया गया है।
स्पर्शमें निक्षेप, नय आदि सोलह अधिकारोंद्वारा तेरह प्रकारके स्पोंका वर्णन करके प्रकृतमें कर्म-स्पर्शसे प्रयोजन बतलाया है।
कर्ममें पूर्वोक्त सोलह अधिकारोंद्वारा १ नाम, २ स्थापना, ३ द्रव्य, ४ प्रयोग, ५ समवधान ६ अधः, ७ ईर्यापथ, ८ तप ९ क्रिया और १० भाव, इन दश प्रकारके कर्मोका वर्णन है।
प्रकृतिमें शील और स्वभावको प्रकृतिके पर्यायवाची बताकर उसके नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव, इन चार भेदोंमेंसे कर्म-द्रव्य-प्रकृतिका पूर्वोक्त १६ अधिकारोंद्वारा विस्तारसे वर्णन किया गया है।
___ इस खंडका प्रधान अधिकार बंधनीय है, जिसमें २३ प्रकारकी वर्णणाओंका वर्णन और उनमेंसे कर्मबन्धके योग्य वर्गणाओंका विस्तारसे कथन किया है।
यह खंड अ. प्रतिके ११०६ वें पत्रसे प्रारम्भ होकर १३३२ वें पत्रपर समाप्त हुआ है और वहां कहा है--
एवं विस्ससोवचय-परूवणाए समत्ताए बाहिरिय-वग्गणा समत्ता होदि ।
इन्द्रनन्दिने श्रुतावतारमें कहा है कि भूतबलिने पांच खंडोंके पुष्पदन्त विरचित सूत्रों६ महाबंध सहित छह हजार सूत्र रचनेके पश्चात् महाबंध नामके छठवें खंडकी तीस हजार श्लोक प्रमाण रचना की।
तेन ततः परिपठितां भूतबलिः सत्प्ररूपणां श्रुत्वा । षखंडागमरचनाभिप्रायं पुष्पदन्तगुरोः ॥ १३७ ॥ विज्ञायाल्पायुष्यानल्पमतीन्मानवान् प्रतीत्य ततः । द्रव्यप्ररूपणाद्याधिकारः खंडपंचकस्यान्वक् ।। १३८ ॥ सूत्राणि षट्सहस्रग्रंथान्यथ पूर्वसूत्रसहितानि । प्रविरच्य महाबंधाहयं ततः षष्ठकं खंम् ।। १३९ ॥ त्रिंशत्सहस्रसूत्रग्रंथं व्यरचयदसौ महात्मा।
इन्द्र, श्रुतावतार.
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