Book Title: Shatkhandagama Pustak 01
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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(४२)
अमोघवर्षके राज्य
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प्रारंभिक इतिहासको देखनेसे जान पड़ता है कि संभवतः गोविन्दराजने अपने जीवन कालमें ही अपने अल्पवयस्क पुत्र अमोघवर्षको राजतिलक कर दिया था और उनके संरक्षक भी नियुक्त कर दिये थे, और आप राज्यभारसे मुक्त होकर, आश्चर्य नहीं, धर्मध्यान करने लगे हो । नवसारकि शक ७३८ के ताम्रपटों में अमोघवर्ष के राज्यमें किसी प्रकारकी गड़बड़ीकी सूचना नहीं है, किंतु सूरतसे मिले हुए शक संवत् ७४३ के ताम्रपटोंमें एक विप्लवके समनके पश्चात् अमोघवर्षके पुनः राज्यारोहणका उल्लेख है । इस विप्लवका वृत्तान्त बड़ौदासे मिले हुए शक संवत् ७५७ के ताम्रपटोंमें भी पाया जाता है । अनुमान होता है कि गोविंन्दराजके जीवनकालमें तो कुछ गड़बड़ी नहीं हुई किंतु उनकी मृत्यु के पश्चात् राज्यसिंहासनके लिये विप्लव मचा जो शक संवत् ७४३ के पूर्व समन हो गया । अतएव शक ७३८ में जगतुंग गोविन्दराज ) जीवित थे इस कारण उनका उल्लेख किया और उनके पुत्र सिंहासनारूढ़ हो चुके थे इससे उनका भी कथन किया, यह उचित जान पड़ता है 1
यदि यह कालसंबन्धी निर्णय ठीक हो तो उस परसे वीरसेनस्वामीके कुल रचनाकाल व धवला प्रारंभकालका भी कुछ अनुमान लगाया जा सकता है । धवला टीका ७३८ शकमें समाप्त हुई और जयधवला उसके पश्चात् ७५९ शक । तात्पर्य यह कि कोई २० वर्ष में जयधवलाके ६० हजार श्लोक रचे गये जिसकी औसत एक वर्षमें ३ हजार आती है । इस अनुमानसे धवलाके ७२ हजार श्लोक रचनेमें २४ वर्ष लगना चाहिये । अतः उसकी रचना ७३८ – २४ = ७१४_शकमें प्रारंभ हुई होगी, और चूंकि जयधवलाके २० हजार श्लोक रचे जानेके पश्चात् वीरसेन स्वामीकी मृत्यु हुई और उतने श्लोकोंकी रचनामें लगभग ७ वर्ष लगे होंगे, अतः वीरसेन स्वामीके स्वर्गवासका समय ७३८ + ७ = ७४५ शकके लगभग आता है । तथा उनका कुल रचना - काल शक ७१४ से ७४५ अर्थात् ३१ वर्ष पड़ता है ।
१ Altekar : The Rashtrakutas and their times p. 71 fi
२ आजसे कोई ३० वर्ष पूर्व विद्वद्वर पं. नाथूरामजी प्रेमीने अपनी विद्वदुरत्नमाला नामक लेखमालामें वीरसेनके शिष्य जिनसेन खामीका पूरा परिचय देते हुए बहुत सयुक्तिक रूपसे जिनसेनका जन्मकाल शक संवत् ६७५ अनुमान किया था और कहा था कि उनके गुरुका जन्म उनसे ' अधिक नहीं तो १० वर्ष पहले लगभग ६६५ शक में हुआ होगा । इससे वीरसेन स्वामीका जीवनकाल शक ६६५ से ७४५ तक अर्थात् ८० वर्ष पड़ता है । ठीक यही अनुमान अन्य प्रकारसे संख्या जोड़कर प्रेमीजीने किया था और लिखा था कि ' जिनसेन स्वामीके गुरु वरिसेन खामीकी अवस्था भी ८० वर्षसे कम न हुई होगी ऐसा जान पड़ता है । विद्वद्रत्नमाला पृ. २५ आदि, व पृ. ३६. इन हमारे कविश्रेष्ठोंके पूर्ण परिचय के लिये पाठकों को प्रेमीजीका वह ८९ पृष्ठोंका पूरा लेख पढ़ना चाहिये ।
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