Book Title: Shatkhandagama Pustak 01
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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' वह सूची एक श्वेतांबर विद्वान्ने प्रत्येक ग्रंथ देखकर तैयार की थी और अभी तक वह बहुत ही प्रामाणिक समझी जाती है ' । नन्दिसंघकी प्राकृत पट्टावलीके अनुसार धरसेनका काल वीर निर्वाणसे ६२+१०+१८३+१२३+९७+२८+२१=६१४ वर्ष पश्चात् पड़ता है, अतः अपने पट्टकालसे १४ वर्ष पूर्व उन्होंने यह ग्रंथ रचा होगा। इस समीकरणसे प्राकृत पट्टावली और बृहट्टिप्पणिकाके संकेत, इन दोनोंकी प्रामाणिकता सिद्ध होती है, क्योंकि, ये दोनों एक दूसरेसे स्वतंत्र आधारपर लिखे हुए प्रतीत होते हैं ।
षट्खण्डागमके रचनाकाल पर कुछ प्रकाश कुन्दकुन्दाचार्यके संबन्धसे भी पड़ता है। कुन्दकुन्दकृत इन्द्रनन्दिने श्रुतावतारमें कहा है कि जब कर्मप्राभृत और कषायप्राभृत दोनों
परिकर्म पुस्तकारूढ़ हो चुके तब कोण्डकुन्दपुरमें पद्मनन्दि मुनिने, जिन्हें सिद्धान्तका ज्ञान गुरु-परिपाटीसे मिला था, उन छह खण्डोंमेंसे प्रथम तीन खण्डोंपर परिकम नामक बारह हजार श्लोक प्रमाण टीका-प्रन्थ रचा । पद्मनन्दि कुन्दकुन्दाचार्यका भी नाम था और श्रुतावतारमें कोण्डकुन्दपुरका उल्लेख आनेसे इसमें संदेह नहीं रहता कि यहां उन्हींसे अभिप्राय है। यद्यपि प्रो. उपाध्ये कुन्दकुन्दके ऐसे किसी प्रन्थकी रचनाकी बातको प्रामाणिक नहीं स्वीकार करते, क्योंकि उन्हें धवला व जयधवलामें इसका कोई संकेत नहीं मिला । किंतु कुन्दकुन्दके सिद्धान्त ग्रंथोंपर टीका बनानेकी बात सर्वथा निर्मूल नहीं कही जा सकती, क्योंकि, जैसा कि हम अन्यत्र बता रहे हैं, परिकर्म नामक प्रन्थके उल्लेख धवला व जयधवलामें अनेक जगह पाये जाते हैं।
प्रो. उपाध्येने कुन्दकुन्दके लिये ईस्वीका प्रारम्भ काल, लगभग प्रथम दो शताब्दियोंके भीतरका समय, अनुमान किया है उससे भी षटण्डागमकी रचनाका समय उपरोक्त ठीक जंचता है।
धरसेनाचार्य गिरिनगरकी चन्द्रगुफामें रहते थे। यह स्थान काठियावाडके अन्तर्गत है। . भौगोलिक यह बाईसवें तीर्थंकर नेमिनाथकी निर्वाणभूमि होनेसे जैनियों के लिये बहुत प्राचीन
उल्लेख कालसे अबतक महत्वपूर्ण है । मौर्य राजाओंके समयसे लगाकर गुप्त काल अर्थात् ४ थी, ५ वीं शताब्दितक इसका भारी महत्व रहा जैसा कि यहांपर एक ही चट्टान पर पाये गये अशोक मौर्य, रुद्रदामन और गुप्तवंशी स्कन्धगुप्तके समयके लेखोंसे पाया जाता है।
... धरसेनाचार्यने ' महिमा ' में सम्मिलित संघको पत्र भेजा था जिससे महिमा किसी नगर या स्थान का नाम ज्ञात होता है, जो कि आन्ध्र देशके अन्तर्गत वेणाक नदीके तीरपर था । वेण्या नामकी एक नदी बम्बई प्रान्तके सतारा जिलेमें है और उसी जिलेमें महिमानगढ़ नामका एक गांव भी है, जो हमारी महिमा नगरी हो सकता है । इससे अनुमानतः यहीं सतारा जिलेमें वह
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