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PHARMA
। गोम्मटसार जीवका गाथा ई मैं कहाँगा; असी प्रतिज्ञा करि । इस प्रतिज्ञा करि इस शास्त्र के संबन्धाभिधेय, शक्यानुष्ठान, इष्टप्रयोजनपना है; तातै बुद्धिवंतनि करि सादर करना योग्य कह्या हैं ।
तहां जैसा संबन्ध होइ, तैसा ही जहां अर्थ होइ; सो संबंधाभिधेय कहिये । बहुरि जाके अर्थ के आचरण करने की सामर्थ्य होइ, सो शक्यानुष्ठान कहिये । बहुरि जो हितकारी प्रयोजन लिए होइ, सो इष्टप्रयोजक कहिये।
.. कथंभूतं प्ररूपणं ? जाकौं कहौंगा, सो कैसा है प्ररूपण ? गुणरत्नभूषणोदयंगुण जे सम्यग्दर्शनादिक, तेई भये रत्न, सोई है आभूषण जाकै, असा जो गुणरत्नभूषण चामुंडराय, तिसतें है उदय कहिले उत्पत्ति जाकी अंसा शास्त्र है । जातें चामुंडराय के प्रश्न के वश तें याकी उत्पत्ति प्रसिद्ध है । अथवा गुरारूप जो रत्न सो भूषयति कहिये शोभै जिहि विर्षे ऐसा गुणरत्नभूषण. मोक्ष, ताकी है उदय कहिये उत्पत्ति जाते ऐसा शास्त्र है।
भावार्थ -- यहु शास्त्र मोक्ष का कारण है । बहुरि विकथादिरूप बंध का कारण नाहीं है । इस विशेषण करि १. बंधक २. बंध्यमान ३. बंधस्वामी ४. बंधहेतु ५. बंधभेद - ये पंच सिद्धांत के अर्थ हैं।
तहां कर्मबंध का कर्ता संसारी जीव, सो बंधक । बहुरि मूल-उत्तर प्रकृतिबंध सो बंध्यमान । बहुरि यथासंभव बंध का सद्भाव लीये गुणस्थानादिक, सो बंधस्वामी। बहुरि मिथ्यात्वादि प्रास्रव, सो बंधहेतु । बहुरि प्रकृति, स्थिति आदि बंधभेद - इनका निरूपण है, तातें गोम्मटसार का द्वितीयनाम पंचसंग्रह है। तिहिविर्षे बंधक जो जीव, ताका प्रतिपादन करणहारा यहु. शास्त्र जीवस्थान वा जीवकांड इनि दोय नामनिकरि विख्यात, ताहि मैं कहौंगा । असा शास्त्र के कर्ता का अभिप्राय यह विशेषण दिखावै है।
बहुरि कथंभूस प्ररूपरणं ? कैसा है प्ररूपण ? सिद्धं कहिये पूर्वाचार्यनि की परंपरा करि प्रसिद्ध है, अपनी रुचि करि नाहीं रचनारूप किया है । इस विशेषण करि आचार्य अपना कपिना कौं छोडि पूर्व प्राचार्यादिकनि का अनुसार को कहै हैं। पुनः किं विशिष्ट प्ररूपणं ? बहुरि कैसा है प्ररूपण ? शुद्ध कहिये पूर्वापर विरोध कौं आदि देकर दोषनि करि रहित है, तातें निर्मल है । इस विशेषण करि सम्यग्ज्ञानी जीवनि के उपादेयफ्ना इस शास्त्र का प्रकाशित कीया है ।
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