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सम्पमानचन्द्रिका माषाटीका ]
संखज्जयमे वासे, दीवसमुद्दा हवंति संखेज्जा। वासम्मि असंखेज्जे. बीवसमुद्दा असंखेज्जा ॥४०७॥
संख्यातप्रमे वर्षे, द्वीपसमुद्रा भवंति संख्याताः ।
घर्षे असंख्येये,द्वीपसमुद्रा असंख्येयाः ॥४०७॥ टीका - बारहवां कांडक विर्षे क्षेत्र संख्यात द्वीप - समुद्र प्रमाण अर काल संख्यात वर्ष प्रमाण है । बहुरि तेरहवां कांडक, जे तैजस शरीरादिक द्रव्य की अपेक्षा पूर्वे स्थानक कहे, तिनि विष क्षेत्र असंख्यात द्वीप - समुद्र प्रमाण है। पर काल असंख्यात वर्ष प्रमाण है । परि इन विर्षे इतना विशेष है - तेरहवा ते चौदहवां विर्षे असंख्यातगुणा क्षेत्रकाल है । असें ही उत्तरोत्तर असंख्यात दुणा क्षेत्र -- काल जानना बहुरि उगणीसवां अंत का कांडक विर्षे द्रव्य तौ कार्माण वर्गणा कौं ध्रुवहार का भाग दीजिए, तीहि प्रमाण पर क्षेत्र संपूर्ण लोकाकाश प्रमाण अर काल एक समय घाटि एक पल्य प्रमाण है।
कालविसेसेरणवाहिद-खेत्तविसेसो धुवा हवे चड्ढी। अर्धववड्ढी वि पुणो, अविरुद्धं इट्ठकंडस्मि ॥४०८॥
कालविशेषेणावहितक्षेत्रविशेषो ध्रुवा भवेद्वद्धिः।
अध्रुववृद्धिरपि पुनः अविरुद्धा इष्टकांडे ॥४०८ टीका - विवक्षित कांडक का जघन्य क्षेत्र के प्रदेशनि का परिमाण, तिस ही कांडक का उत्कृष्ट क्षेत्र के प्रदेशनि का परिमाण में घटाएं, जो प्रमाण रहै, ताकौं क्षेत्र विशेष कहिये । बहुरि विवक्षित कांडक का जघन्य काल के समयनि का परिमाण तिस ही कांडक का उत्कृष्ट काल के समयनि का परिमाण विर्षे घटाएं, अवशेष जो परिमाण रहै, ताकौं काल विशेष कहिए । तहां क्षेत्र विशेष कौं काल विशेष का भाग दीएं, जो प्रमाण होइ, सोई तिस कांडक विर्षे ध्रुववृद्धि का परिमारण जानना । सो प्रथम कांडक विष असे करते धनागुल कौं प्रावली का भाग दीएं, जो प्रमाण होइ सो ध्रुववृद्धि का प्रमाण जानना । सुच्यगुल का असंख्यातवां भाग प्रमाण द्रव्य की अपेक्षा भेद भए, तो क्षेत्र विषं एक प्रदेश बधै अर प्रावली करि भाजित घनांगुल प्रमाण प्रदेश बधे, तब काल विर्षे एक समय की बधवारी होइ । जैसे प्रथम कांडक का अंत पर्यंत ध्रुववृद्धि करि जेते समय बधैं, तिनको जघन्य काल विर्षे मिलाएं,