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[ गोम्मटसार जीवकाण गाथा ५७६-५७७
भिन्न मुहूर्त हो है वा याकौं उत्कृष्ट अंतर्मुहूर्त कहिए । यात प्रागें दोय समय पाटि मुहूर्त आदि अंतर्मुहूर्त के विशेष जानने । इहां प्रासांभिक गाथा कहै हैं---
ससमयमावलिप्रवरं, समकरसमुहत्तयं तु उक्कस्सं ।
मज्झासंखवियप्पं, वियारण अंतोमुहुत्तमिणं ॥
एक समय अधिक प्रावली मात्र जघन्य अंतर्मुहूर्त है । बहुरि एक समय धाटि मुहूर्त मात्र उत्कृष्ट अंतर्मुहूर्त है । मध्य समय विर्षे दोय समय सहित पावली से लगाइ, दोय समय बाटि मुहूर्त पर्यंत असंख्यात भेद लीए, मध्य अंतर्मुहूर्त है । असें जानहु ।
दिवसो पक्खो मासो, उडु अयणं वस्समेवमादी हु। संखेज्जासंखेज्जागताओ होदि ववहारो ॥५७६॥
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विषसः पक्षो मासः, ऋतुरयनं वर्षमेवमादिहि ।
संख्येयासंख्येयानंता भवंति व्यवहाराः ॥५७६॥ टीका - तीस मुहूर्त मात्र अहोरात्र है । मुख्यपने पंचदश अहोरात्र मात्र पक्ष है । दोय पक्ष मात्र एक मास है । दोय मास मात्र एक ऋतु हो है । तीन ऋतु मात्र एक अयन हो है । दोय अयन मात्र एक वर्ष हो है । इत्यादि प्रावली तें लगाई संख्यात, असंख्यात, अनंत पर्यंत अनुक्रम ते श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, केवलज्ञान का विषय भूत व्यवहार काल जानना ।
ववहारो पुण कालो, माणुसखेत्तम्हि जाणिदव्वो दु । जोइसियारणं धारे, ववहारो खलु समाणो ति ॥५७७॥
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व्यवहारः पुनः कालः, मानुषक्षेत्रे ज्ञातव्यस्तु ।
ज्योतिडकारणां धारे, व्यवहारः खलु समान इति ॥५७७॥ टीका - बहुरि व्यवहार काल मनुष्य क्षेत्र विर्षे प्रगटरूप जानने योग्य हैं। जाते मनुष्यक्षेत्र विषं ज्योतिषी देवनि का चलने का काल अर व्यवहार काल समान है।
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