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सम्पज्ञानमनिका भावाटीको ।
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टीका - वर्धमान स्वामी के मुख कमल ते निकस्या असा सकाल शास्त्र महान गंभीर, ताके प्रकट करने की समर्थ असा सिद्धपर्यंत भालाप, सो श्रीगौतम स्वामी काँ नमस्कार करि मैं कहाँ छौ ।
तहां सामान्य गुणस्थान रचना विर्षे जैसे चौदह गुणस्थानवी जीव हैं । गुणस्थान रहित सिद्ध हैं। चौदह जीवसमास युक्त जीव हैं । तिनकरि रहित जीव हैं। छह-छह, पांच-पांच, च्यारि-च्यारि, पर्याप्ति, अपर्याप्ति युक्त जीव हैं । तिनकरि रहित जीव हैं । दश, सात, नव, सात, पाठ, छह, सात, पांच, छह, च्यार, च्यारि, तीन, च्यारि, दोय, एक प्राण के धारी जीव हैं । तिनकरि रहित जीव हैं। पंद्रह योग युक्त जीव' हैं। प्रयोगी जीव हैं। तीन वेद युक्त जीव हैं। तिनकरि रहित जीव हैं। च्यारि कषाय युक्त जीव हैं । तिनकरि रहित जीव हैं । पाठ ज्ञान युक्त जीव हैं। ज्ञान रहित जीव नाहीं। सप्त संयम युक्त जीव हैं। तिनकरि रहित जीव हैं । च्यारि दर्शन युक्त जीव हैं । दर्शन रहित जीव नाहीं । द्रव्य, भाव छह लेश्या युक्त जीव हैं । लेश्या रहित जीव हैं । भव्य या अभव्य जीव हैं । दोक रहित जीव हैं। छह सम्यक्त्व युक्त जीव हैं । सम्ययत्व रहित माहीं। संशी वा असंही जीव हैं। दोऊ रहित जीव हैं । आहारी जीव हैं। अनाहारी जीव हैं। दोऊ रहित नाहीं । साकारोपयोग वा अनाकारोपयोग वा युगपत् दोऊ उपयोग युक्त जीव हैं। उपयोग रहित जीव नाहीं हैं। अँसें अन्यत्र यथासंभव जानना।
अथ गुणस्थान वा मार्गणास्थाननि विर्षे यथायोग्य बीस प्ररूपणा निरूपणा
कीजिए है।
सो यन्त्रनि करि विवक्षित गुणस्थान वा मार्गणास्थान का पालाप विर्षे जो जो प्ररूपणा पाइए, सो सो लिखिए हैं । तहां यन्त्रनि विर्षे असी सहनानी जाननी । पहिले तो एक बडा कोठा, तिस विष तौ जिस पालाप विर्षे बीस प्ररूपणा लगाई, तिसका नाम लिखिए है । बहुरि तिस कोठे के प्राण प्रागै बरोबरि बीस कोठे, तिनविषं प्रथमादि कोठे लें लगाइ, अनुक्रमात मुरणस्थान, जीवसमास, पर्याप्ति, प्राण, संज्ञी, मति, इंद्रिय, काय, योग, वेद, कषाय, ज्ञान, संयम, दर्शन, लेश्या, भव्य, सम्यक्त्व, संजी, प्राहार, उपयोग ए बीस प्ररूपणा जो जो पाइए, सो सो लिखिए है । तिनविष गुणस्थानार्दिक का नाम नाहीं लिखिए हैं। तथापि पहिला कोठाविषं गुणस्थान दुसरा विर्षे जीवसमास, तीसरा विषं पर्याप्ति इत्यादि बीसवां कोठा विर्षे उपयोग पर्यंत जानने । तहां तिनि कोनि विर्षे जहां जिस प्ररूपया का जितमा प्रमाण होइ, तितके