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सम्ममानका भावाटीका ] . मनःपर्यय के सात हैं। केवलज्ञान के दोया हैं । असंयम के च्यारि हैं। देशसंयम के एक है। सामायिक, छेदोपस्थापना के च्यारि हैं। परिहार विशुद्धि के दोय हैं। . सूखसांपग एक है। यथाख्यात, चारित्र के च्यारि हैं । चक्षु, प्रचक्षु दर्शन के बारह हैं। अवधि दर्शन के नव हैं। केवल दर्शन के दोय हैं । कृष्ण, नील, कपोत लेश्या के च्यारि हैं । पीत पद्म के सात हैं । शुक्ल के तेरह हैं । भव्य के चौदह हैं। अभव्य के एक है । मिथ्यात्व, सासादन, मिश्र के एक एक हैं । द्वितीयोशम सम्यक्त्व के आठ हैं । प्रथमोपशम सम्यक्त्व अर वेदक के च्यारि है । क्षायिक के ग्यारह हैं । संज्ञी के बारह हैं । असंझी के एक है । प्राहारक के तेरह हैं । अनाहारक के पांच हैं । असे ए गुणस्थान कहे, तिन गुणस्थाननि विर्षे पालाप मूल में जैसे सामान्य गुणस्थाननि विर्षे अनुक्रमः करि. पालाप कहे थे, सही जानने ::
गुणजीवा पज्जती, पाणा सणा गइंदिया काया। जोगा वेदकसाया, गाणजमा दंसरणा लेस्सा ॥७२॥
भव्वा सम्मत्ता वि य, सम्णी पाहारगा य उवजोगा । . जोंग्गा पविदव्या, ओधावेसेसु समुदाय ॥७२६॥ जुम्म ।
गुणजीवाः पर्याप्तयः, प्राणाः संजाः गतींद्रियाणि कायाः ।.. . योगा देदकषायाः, ज्ञानयमा दर्शनानि लेश्याः ॥७२५॥ .::
भव्याः सम्यक्स्वान्यपि च, संजिनः प्राहोरकाश्योपयोगाः। ...
योग्याः प्ररूपितव्या, ओघादेशयोः समुदायम् ॥७२६।। युग्मम् ।' : टोका - गुरणस्थान चौदह, मूल जीवसमास चौदह, तहां पर्याप्त सात, अपर्याप्त साल, पर्याप्ति छह, तहां संशी पंचेंद्रिय के पर्याप्ति अवस्था विर्षे पर्याप्ति प्रकस्था संबंधी छह पर अंपर्याप्ति अवस्था विर्षे अपर्याप्त संबंधी छह, असंही या विकलत्रय के पर्याप्ति-अपर्याप्ति संबंधी पांच-पांच, एकेंद्री के च्यारि-च्यारि जानने।
प्राण - संजी पंचेंद्रिय के दश, तीहि अपर्याप्त के सात, असंज्ञी पंचेंद्री के नव तीहि अपर्याप्त के सात, चौइन्द्री के पाठ, तीहिं अपर्याप्त के छह, तेइन्द्री के सात, तीहि अपर्याप्त के पांच, बेइन्द्री के छह, ती हिं अपर्याप्त के च्यारि, एकेंद्रिय के च्यारि, तोहिं अपर्याप्त के तीन हैं। सयोग केवलो के वचन, काय, उस्वास, आयु ए व्यरि