Book Title: Samyaggyanchandrika
Author(s): Yashpal Jain
Publisher: Kundkund Kahan Digambar Jain Trust

View full book text
Previous | Next

Page 829
________________ Pre-armyNT". उन पर्यवहार! नरकमस! 21३६ ममः सानुभा३॥ पर्यय र आदि शुभ प्रतापयशा! Whi नीमप्रमा १ . KIRC पिना महासाचनमा ३1 (पर्यय छ। आदि । शुभ मनःपयय झामो अपूर्व करणादिक्षी णकपण्यपये गुण । गु धनवना पत !षत गुणस्थान सद है। ज्ञान गल छन् गुरु ०गुरु गु० | मनःमुगु० । मुगु गु गु० ०शा चत वसमतगत । यता स्ति चल गया बरकत | चल पल ! व | क्र । S केवट वानी! " सयोर ३ पर अपर are सना ।. । २ । भी Hells--- सोगीअयो। नागुणस्था गिरसिद्ध रच गुणस्था सामन्यसय ममागणाप्रमत्त रचना - आदि १ । 1४ | किया प्रकाहिक विदा AA 826 R

Loading...

Page Navigation
1 ... 827 828 829 830 831 832 833 834 835 836 837 838 839 840 841 842 843 844 845 846 847 848 849 850 851 852 853 854 855 856 857 858 859 860 861 862 863 864 865 866 867 868 869 870 871 872 873