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{ गोम्मटसार गोषका गामा ७२७-७२८ प्राण हैं । तिसही के वचन बिना तीन हो हैं । कायबल बिना दोय होय हैं । अयोगी के एक आयु प्रारण है।
बहुरि संज्ञा च्यारि, गति च्यारि, इन्द्रिय पांच, काय छह, योग पंद्रह तिनमें पर्याप्त अवस्था संबंधी ग्यारह, अपर्याप्त अवस्था संबंधी तीन मिश्र पर एक कार्माण ए च्यारि हैं । वेद तीन, कषाय च्यारि, शान आठ, संयम सात, दर्शन च्यारि, लेश्या छह, भव्य दोय, सम्यक्त्व छह, संज्ञी दोय, आहार दोय, उपयोग बारह, ए सर्व समु. च्चय गुणस्थान वा मार्गणा स्थाननि विर्षे यथायोग्य प्ररूपण करने ।
जीवसमास विर्ष विशेष कहैं हैं -
ओघे आदेसो वा सम्णीपज्जतगा हवे जत्थ । तत्य य उणवीसंता, इगि-बि-सि-गुणिदा हवे ठाणा ॥७२७॥
श्रोधे आदेश वा, संक्षिपर्यन्तका भवेयुर्यत्र ।
तमा कोलमिला, एकाद्वित्रिगुरिणता भवेपुः स्थानानि ।।७२७॥ टीका - गुरणस्थान का मार्गणास्थान विष जहां संज्ञी पंचेंद्री पर्यंत भूल चौदह जीवसमास निरूपण करिए, तहां उत्तर जीवसमास एक नै प्रादि देकरि उगणीस पर्यंत सामान्य करि, दोय पर्याप्त अपर्याप्त कार, तीन पर्याप्त, अपर्याप्त, लब्धि अप
प्ति करि गुरणे, एकन आदि देकरि उगरणीस पर्यत या दोय नै प्रादि देकरि अठतीस पर्यंत वा तीन नैं प्रादि देकर सत्तावनः पयंत जीवसमास के भेद हैं । ते सर्व भेद तहां जानने । सामान्य जीवसमास एक, स-स्थावर भेदते दोय, इत्यादि सर्वभेद जीवसमास अधिकार विर्षे कहे हैं; सो जानने । इनिकी एक, दोय, तीन करि गुरणे क्रमतें एक, दोय, तीन आदि उपरणीस, अठतीस सत्तावन पर्यंत भेद हो हैं ।
इहां से आगे गुणस्थानमार्गरणा विर्षे गुणस्थान, जीवसमास इत्यादि बीस भेद जोडिए है; सो कहिए है - :
वीर-मह-कमल-रिणग्गय-सयल-सुय-गहरण-पयउरण-समत्थं । । पमिऊण गोयममहं, सिद्धतालावमणुवोच्छं ॥७२८॥
थोरमुखकमलनिर्गतसकलश्रुतग्रहणप्रकटनसमर्थम् । नत्वा गौतममहं सिद्धांतालापमनुवक्ष्ये ॥७२॥
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