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| गोम्मटसार जोवकाण्ड वाया ५६०-५६१
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interest, एकैके ये स्थिता हि एककाः । रत्नानां राशिरिव ते कालारगवो मंतव्याः ।।५८९ ।।
टीका - लोकाकाश का एक-एक प्रदेश विषै जे एक-एक तिष्ठे हैं। जैसें रत्ननि की राशि भिन्न-भिन्न तिष्ठे तैसे जे भिन्न-भिन्न तिष्ठे हैं, ते कालाणू जानने ।
बबहारी पुण कालो, पोग्गलदश्वादणंतगुणमेत्तो । तत्तो अरांतगुणिवा, आगासपदेसपरिसंखा ॥५६०॥
व्यवहारः पुनः कालः, पुद् गलद्रव्यादनंतगुरणमात्रः । सततगुणिता, प्राकाशप्रदेशपरिसंख्या ॥५९०॥
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टीका • बहुरि व्यवहार काल पुद्गल द्रव्य तैं अनंत गुणा समयरूप जानना । बहुरि तिनि तैं अनंतगुणी सर्व प्रकाश के प्रदेशनि की संख्या जाननी ।
लोगागासपसा, धम्माधम्मेगजीवगपदेसा ।
सरिसा हु पदेसो पुण, परमाणु-श्रवट्ठिदं खेत्तं ॥५६१॥
लोकाकाशप्रदेशा, धर्माधर्मकजीवगप्रदेशाः ।
eet हि प्रदेशः पुनः परमाण्ववस्थितं क्षेत्रम् ॥। ५११॥
टीका - लोकाकाश के प्रदेश पर धर्मेद्रव्य के प्रदेश पर अधर्मद्रव्य के प्रदेश
जातें ए सर्व जगच्छ्रे रेगी का रोकै, सो प्रदेश का प्रमाण है;
अर एक जीवद्रव्य के प्रदेश सर्व संख्याकरि समान हैं; घनप्रमाण हैं । बहुरि पुद्गल परमाणू जेता क्षेत्र को तातें जघन्य क्षेत्र र जघन्य द्रव्य श्रविभागी है ।
क्षेत्र प्रमाण करि छह द्रव्यति का प्रमाण कीजिए है । तहां जीव द्रव्य लोक प्रमाण है । लोकाकाश के प्रदेशनि तें अनंत गुणा है। कैसे ? सो राशिक करि कहिए है - प्रभाग राशि लोक, थर फलराशि एक शलाका, घर इच्छाराशि जीवद्रव्य का प्रमाण । सो फल करि इच्छा कौं गुरौं, प्रमाण का भाग दीए, लब्धराशि जीवराशि कौं लोक का भाग दोजिए, इतना आया, सो यहु शलाको का परिमाण भया । बहुरि प्रमाण राशि एक शलाका, फलराशि लोक, श्रर इच्छाराशि पूर्वोक्त शलाका का प्रमाण, सो पूर्वोक्त शलाका का प्रमाण जीवराशि कौं लोक का भाग दीए, अनंत पाए सो जानना । इस अनंत को फलराशि लोक करि गुणिए