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मासस्य
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पिम्मसार जीवका गाया ६२०-६२२ ....... असे सात अधिकारनि करि षट् द्रव्य कहे ।
प्रागें पंचस्तिकायनि की कहैं हैं--- सव्वं छक्कमकालं, पंचत्थीकायसण्णिदं होदि। :...:. काले पवेसपचयो, जम्हा पत्थि ति णिद्दिढें ॥६२०॥
द्रव्यं षटकमकालं, पंचास्तिकायसंशितं भवति । . . " .
काले प्रदेशप्रचयो, यस्मात् नास्तीति निर्दिष्टम् ॥२०॥ टोका – पूर्व जे षट् द्रव्य कहे, ते प्रकालं कहिए काल. द्रव्य रहित पंचास्तिकाय नाम पाये हैं ! जाते काल के प्रदेश प्रचय नाहीं है । काल एक प्रदेश मात्र ही है । अर पुद्गलवत् परस्पर मिल नाहीं; तातै काल के कायपणां नाहीं है। जे प्रदेशनि का प्रचय जो समूह ताकरि युक्त हौहि, ते अस्तिकाय हैं; जैसा परमागर्म विर्षे
कया है।
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प्रा नव पदार्थनि की कहैं हैं - . . . . . णव य पदस्था जीवाजीवा ताणं च पुण्णपायदुर्ग । पासव-संवर-णिज्जर-बंधा मोक्खो य होंति ति ॥६२१॥
नव च पदार्था जीयाजीवाः तेषां च पुण्यपापद्विकम् ।
प्रास्त्रवसंवरनिर्जराबंधा मोक्षश्च भवतीति ॥६२१॥ १. .. टोका - जीव पर अजीव ए तो दोय मूल पदार्थ प्रर तिनही के पुण्य पर
पॉप दो ए पदार्थ हैं । अर पुण्य • पाप ही का भानव, बंध, संवर; निर्जरा, मोक्षः ए "पांच पदार्थ; असे सर्व मिले हुए ए नव पदार्थ हैं । पदार्थ शब्द सर्वत्र लगावना । जीव पदार्थ, अजीव पदार्थ इत्यादि जानना । . जीवदुगं उसळं, जीवा पुण्णा हु सम्मगुणसहिदा ।
वदसहिदा वि य पावा, तन्विदरीया हवंति ति ॥६२२॥
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१. उत्तं कालविजुतं गायछा पम अत्यिकाया दु । द्रव्यसंग्रह माया सं. २३ ।। २. संवर, निर्जरा और मोक्ष इनके द्रव्य भोर भाव की अपेक्षा हो-दो भेद हैं। देखो द्रव्यसंग्रह गाचा सं.
३४, ३६, ३७, लथा समयसार गाथा १३ को टीका आदि।