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सम्यग्जामचन्तिका भाषाका ] च्छणी का न्यारवां, नवमी, सातवां, पांचवां, चौथा वर्गमूल का भाग जगच्छे णी कौं दीएं, जो-जो प्रमाण आवै, तितने-तितने हैं। ज्योतिषी पण्णट्ठि प्रमाण प्रतरांगुल का भाग जगत्प्रतर को दीए, जो प्रमाण आवै, तितने हैं। व्यंतर संख्यात प्रतरांगुल का भाग जगत्प्रतर की दीएं, जो प्रमाण आवै, तितने हैं । भवनवासी धनांगुल के प्रथम वर्गमूल करि जगच्छ्रेणी की गुण, जो प्रमाण प्रादे, तितने हैं । तिथंच किंचित् ऊन संसारीराशि प्रमाण हैं। प्रथम पृथ्वी विर्षे नारकी पनांगुल का द्वितीय वर्गमल करि साधिक बारहा भाग करि हीन जो जगच्छणी, ताकौ गुणें, जो प्रमाण होइ, तितने हैं । द्वितीयादिक पृथ्वी विर्षे क्रमतें जगच्छ णो का बारह्वां, दशवां, आठवां, छठा, तीसरा, दूसरा वर्गमूल का भाग जगच्छणी कौं दीए, जो जो प्रमाण होइ, तितचे-तिलने जानने । इनि सबनि विर्षे अन्य मुणस्थानवालों का प्रमाण घटाक्ने के अर्थी किंचित् ऊन कीएं, मिथ्यादृष्टी जीवनि का प्रमाण हो है । बहुरि पानतादिक विर्षे मिथ्यादृष्टी जीवनि का प्रमाण इहां ही पूर्व कहा है । बहुरि सर्वार्थसिद्धि विर्षे अहमिंद्र सर्व असंयत ही है । ते द्रव्य स्री मनुष्यणी तिनित तिगुणे वा कोई प्राचार्य के मत करि सात गुणे कहे हैं।
प्रागें मनुष्य गति विर्षे संख्या कहे हैं-- तेरसकोडी देसे, बावणं सासणे मुरणेदध्वा । मिस्सा वि य तदुगुणा, असंजदा सत्त-कोडि-सयं ॥६४२॥
त्रयोदशकोटयो देशे, द्वापंचाशत् सासने मंतव्याः ।
मिश्रा अपि च तद्वि गुणा असंयताः सप्तकोटिशतम् ॥६४२॥ . टीका - मनुष्य जीव देशसंयत विषं तेरह कोडि है । बावन कोडि सासादन विर्षे जानने । मिश्र विर्षे तिनते दुगुणे एक सौ च्यारि कोडि जानने । असंयत विष सातसै कोडि जानने और प्रमत्तादिक की संख्या पूर्व कही है; सोई जाननी । अॅसें गुणस्थाननि विर्षे जीवनि का प्रमाण कह्या है।
जीविदरे कम्मचये, पुण्णं पावो ति होदि पुण्णं तु। सुहपयडीणं दवं, पावं असुहाण दव्वं तु ॥६४३॥
१षट्स्तुण्डागम भवला: पुस्तक-३, पृष्ठ-२५२, भाथा सं. ६८ तथा पृष्ठ-२५४, माया सं. ७०सक