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सानपत्रिका भाषाटोका
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टोका - विग्रहगति कौं जे प्राप्त भए, जैसे च्यारघों गतिवाले जीव, बहुरि प्रतर अर लोकपुरणरूप केवल समुद्घात को प्राप्त भए असे सयोगी- जिन, बहुरि सर्व अयोगी- जिन, बहुरि सर्व सिद्ध भगवान ए सर्व अनाहारक हैं । अवशेष सर्व जीव श्राहारक ही हैं ।
सो समुद्घात के प्रकार है ? सो कहैं हैं
arrearraगुव्वियो य मरणंतियो समुग्धावो । जाहारो छट्ठो, सत्तमझो केवलीणं तु ॥ ६६७॥
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deareerrafoners, मारणांतिकः समुद्घातः । तेजआहारः षष्ठः सप्तमः केवलिनां तु ॥२६६७॥
टीका - वेदना, कषाय, वैक्रियिक, मारणांतिक तैजस, छठा श्राहारक, सातवां केवल ए सात समुद्घात जानने । इनिका स्वरूप लेश्या मार्गणा विषे क्षेत्राधिकार में कहा था, सो जानना ।
समुद्घात का स्वरूप कहा, सो कहैं हैं
मूलसरीरमछंडिय, उत्तरदेहस्स जीवपडस्स ।
णिग्गमणं देहावो, होदि समुग्धादणामं तु ॥ ६६८।।
मूलशरीरमत्यक्त्वा उत्तरबेहस्य जीवस्य ।
निर्गमनं देहाद्भवति समुद्धतिनाम तु ||६६८॥
टीका - मूल शरीर की तो छोड़े नाहीं, बहुरि कार्माण, तेजसरूप उतर शरीर सहित जीव के प्रदेश समूह का मूल शरीर तें बाह्य निकसना, सो समुद्घात जैसा नाम जानना ।
श्राहारमारतिय दुगं पि नियमेरा एगदिसिगं तु ।
दस-दिसि गदा हु सेला, पंच समुग्धादया होंति ।।६६६ ॥
आहारमारणांतिक द्विकमपि नियमेन एकविशिकं तु ।
दर्शादिशि गताहि शेषाः पंच समुद्घातका भवति ||६६९ ॥
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