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। मोम्सरसार श्रीवकाष्ट माया ७१४ धार सो पर्याप्त तिर्यंच । बहुरि जो स्त्रीवेदरूप है। सो योनिमत तिर्यच' । जो लब्धि अपर्याप्त अवस्था को धारै सो लब्धि अपर्याप्त तिर्यच ।
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तहां सामान्यादिक चारि प्रकार तिर्यचनि के पंच गुणस्थान पाइए । तहां मिथ्यादृष्टी, सासादन, अविरत विर्षे तीन तीन पालाप हैं । तहां इतना विशेष हैयोनिमत लियंच के अविरत विर्ष एक पर्याप्त पालाप ही है; जातें जो पहिले तिर्यच आयु बांध्या होइ तो भी सम्यग्दृष्टी स्त्रीवेद नपुंसकवेद विर्षे न उपजे । बहुरि मिश्र वा देशविरत विर्षे पर्याप्त पालाप ही है।
तेरिच्छियलद्धियपज्जत्ते, एकको अपुण्ण आलावो। मूलोघं मणुसतिए, मणुसिरिणश्रयदम्हि पज्जत्तो ॥७१४॥
तिर्यग्लमध्यपर्याप्ते, एक अपूर्ण पालापः ।।
मूलोधं मनुष्यत्रिके, मानुष्ययते पर्याप्तः ।।७१४॥ टोका - लब्धि अपर्याप्त तिर्यच विर्षे एक अपर्याप्त पालाप ही है ।
बहरि मनुष्य च्यारि प्रकार - तहां सर्वभेद जामें गर्मित होंइ अंसा सामान्य मनुष्य । बहुरि जो पर्याप्त अवस्था को धारे, सो पर्याप्त मनुष्य, बहुरि जो स्त्री वेदरूप सो योनिमत मनुष्य, बहुरि जो लब्धि अपर्याप्तपनां कौं धार, सो लब्धि अपर्याप्त मनुष्य है।
तहां सामान्यादिक तीन प्रकार मनुष्यनि के प्रत्येक चौदह गुणस्थान पाइए । इहां भान बेद अपेक्षा योनिमत मनुष्य के चौदह गुरणस्थान कहे हैं । मुरणस्थानवत् आलाप जानने। विशेष इतना - जो योनिमत मनुष्य के असंयत विर्षे एक पर्याप्त आलाप ही है । कारण पूर्व कह्या ही है ।
बहुरि इतना विशेष है - जो असंयत तिर्यचिणी के प्रथमोपशम, वेदक ए दोय सम्यक्त्व हैं । पर मनुष्यरगी के प्रथमोपशम, वेदक, क्षायिक ए तीन सम्यक्त्व.संभव हैं । तथापि जहां सम्यक्त्व हो है, तहां पर्याप्त आलाप ही है । सम्यक्स्व सहित मर, सो स्त्रीवेदनि विर्षे न उपजै है। बहुरि द्रव्य अपेक्षा योनिमती पंचम गुणस्थान से ऊपरि गमन करे नाही, तातें तिनकै द्वितीयोपशम सम्यक्त्व नाहीं है ।