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सम्यशमतिका भाषामा ]
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टीका- कार्मारण काययोगवाले जीवनि का जो प्रमाण योगमार्गणा विर्षे कहा, सोई अनाहारक जीवनि का प्रमाण जालना । इसकौं संसारी जीवनि का प्रमाण में घटाएं, अवशेष रहै, तितना आहारक जीवनि का प्रमाण जानना । सोई कहैं हैं - प्रथम योगनि का काल कहिए है - कार्माण का तो तीन समय, औदारिक मिश्र का अंतर्मुहूर्त प्रमाण, औदारिक का तीहिस्यों संख्यात गुणा काल, तहां सर्वकाल मिलाएं तीन समय अधिक संख्यात अंतर्मुहूर्त प्रमाण काल भया । याका किंचित् ऊन संसारी राशि का भाग दीएं, जो प्रमाण पावै, ताकी तीन करि गुण, जो प्रमाण आव तितने अनाहारक जीव हैं; अवशेष सर्व संसारी आहारक जीव हैं । वैक्रियिक, आहारकवाले थोरे हैं, तिन की मुख्यता नाहीं है ।
इहा प्रक्षेप योगोद्धतमिश्रपिंड प्रक्षेपकाणा गुणको भवेदिति, असा यह करणसूत्र जानना । याका अर्थ - प्रक्षेपको मिलाय करि मिश्र पिड का भाग देइ, जो प्रमाण होइ ताकौं प्रक्षेपक करि गुणें, अपना अपना प्रमाण होइ । जैसे कोई एक हजार प्रमाण वस्तु है, ताते किसी का पर्व बट है, किसी का सात बट है, किसी का पाठ बट है । सब की मिलाएं प्रक्षेपक का प्रमाण बीस. भए । तिस बीस का भाग हज़ार कौं दीएं पचास पाए, तिनको पंच करि गुण, अढाई सै भए, सो पंच बटवाले फैं पाए । सात करि गुणे, साढा तीन सौ भए, सो सात बटवाले के पाए । पाठ करि गुणे, च्यारि सै भए, सो आठ बंटवाले के पाए । असे मिश्वक व्यबहार विर्षे अन्यत्र भी जानना । इति प्राचार्य श्रीनेमिचन्द्र विरचित गोम्मटसार द्वितीय नाम पंधसंग्रह प्रथ को जीवतत्त्व प्रदीपिका नाम संस्कृत टीका के अनुसारि सम्यंग्शानचंद्रिका नामा भाषाटीका विर्षे जोवकाण्ड विर्षे प्ररूपित जे बीस प्ररूपणा तिनिविर्षे पाहार-मार्गणा प्ररूपणा
नाम उगनीसवां अधिकार संपूर्ण भया ।।१६॥ .
सच्चे उपदेश से निर्णय करने पर भ्रम दूर होता है, परंतु ऐसा पुरुषार्थ नहीं करता, इसी से भ्रम रहता है। निर्णय करने का पुरुषार्थ करे-तो भ्रम का कारण जो मोह-कर्म, उसके भी उपशमादि हो, तब श्रम दूर हो जाने, ... क्योंकि निर्णय करते हुए परिणामों की विशुद्धता होती है, उससे मोह के स्थिति अनुभाग घटते हैं।
- मोक्षमार्ग प्रकाशक : अधिकार ६, पृष्ठ--३१०