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साना भाषाटोका ]
अब इहां नव पदार्थनि का परिमाण कहिए हैं
जीव द्रव्य ती द्विरूपधारा विषं कहे अपने प्रमाण लीए हैं । वहुरि अजीवविषै पुद्गल द्रव्य जीवराशि ते अनंत गुणे हैं । धर्मद्रव्य एक है । अधमंद्रव्य एक है । चाकाश द्रव्य एक है । कालद्रव्य जगच्छे गी का धन, जो लोक, तीहिं प्रमाण है । सो पुद्गल का परिमाण विषै धर्म, अधर्म, आकाश, काल का परिमाण मिलाएं, अजीव पदार्थ का परिमाण हो हैं ।
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बहुरि असंयत र देशसंयत का परिमाण मिलाए, तिन विषै प्रमत्तादिकनि का प्रमाण संख्यात मिलाए जो प्रमाण होइ, तितने पुण्य जीव हैं । बहुरि किंचि दून दूधगुणहानि करि गुणित समयप्रबद्ध प्रमाण कर्म परमाणूनि की सत्ता है ताके संख्यातवें भागमात्र शुभ प्रकृतिरूप प्रजीव पुण्य हैं । बहुरि मिश्र अपेक्षा किछू अधिक जो पुण्य जीवनि का प्रमाण, तार्कों संसारी राशि में घटाएं, जो प्रमाण रहे, तितने पाप जीव हैं । बहुरि यर्धगुणहानि करि गुणित समयबद्ध की संख्यात का भाग दीजिए, तहां एक बिना भार गण गुर पट्टतिरूप भजीव पाप हैं । बहुरि प्रात्रव पदार्थ समयप्रबद्ध प्रमाण है। संवर पदार्थ समयबद्ध प्रमाण है । निर्जराद्रव्य गुणश्रेणी निर्जरा विष उत्कृष्टपने जितनी निर्जरा होइ तीहि प्रमाण है । बंध पदार्थ समयबद्ध प्रमाण है । मोक्षद्रव्य द्वय गुणित समयप्रबद्ध प्रमाण है ।
इति आचार्य श्री नेमिचन्द्र विरचित गोम्मटसार द्वितीय नाम पंचसंग्रह ग्रंथ की जीवतस्वप्रदीपिका नाम संस्कृत की टीका के अनुसारि सम्यग्ज्ञानचंद्रिका नामा भाषाटीका विषे जोवकाण्ड विर्ष प्ररूपित जे बीस प्ररूपणा तिनवि सम्यक्त्वमार्गा प्ररूपणा नाम सतरहवाः अधिकार संपूर्ण भया ॥ १७॥
जो उपदेश सुनकर पुरुषार्थ करते हैं, वे मोक्ष का उपाय कर सकते हैं और जो पुरुषार्थ नहीं करते वे मोक्ष का उपाय नहीं कर सकते। उपदेश तो शिक्षामात्र है, फल जैसा पुरुषार्थ करे, जैसा लगता है ।
मोक्षमार्ग प्रकाशक- प्रध्याय ६-पृष्ठ- ३१०
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