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सम्याज्ञानधतिका भावाठीका ]
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i. जोयद्विकमुक्तार्थ, जीवाः पुज्या हि सम्यक्त्वगुणसहिताः। .:. -TOP। . व्रतसहिता अपि च, पापास्तद्विपरीता भवंति ॥६२२॥ ...
टीका -- जीव पदार्थ अर अजीव पदार्थ तो पूर्वे जीवसमास अधिकार विर्षे वा इहा षट द्रव्य अधिकार विषं कहैं हैं । बहुरि जे सम्यक्त्व मुरणयुक्त होइ अर व्रत वक्त होई, ते पुण्य जीवं कहिए । बहरि इनिस्यों विपरीत सम्यक्त्व व्रत रहित जै जीवं २ पाप जीव नियमादि शादने । .. -rrr . तहां गुणस्थाननि विषं जीवनि की संख्या कहिए हैं- तिनि विर्षे मिथ्यादृष्टी अर सासादन ए तौ पाप जीव हैं; असा कहें हैं। .
मिच्छाइट्टी पावा, णंताणता य सासणगुणा वि। .. "; पल्लासखेज्जदिमा, अणअण्णवरुवयमिच्छगुणा ॥६२३॥
मिथ्यादृष्टयः पापा, अनतानंतान सासनगुरणा अपि . पल्यासंख्येया,मनन्यतरोदयमिथ्यात्वगुणाः ॥६२३॥
टोका - मिथ्यादृष्टी पापी जीव हैं, ते अनंतानंत हैं । जाते संसारी राशि मैं प्रत्य गुणस्थानवालों का प्रमाण घटाए, मिथ्यादृष्टी जीवनि का प्रमाण हो।है। बहुरि सासादन गुणस्थानवाले भी पाप जीव है; जाते अनंतानुबंधी की. चौकड़ी विर्षे किसी एक प्रकृति का उदय करि मिथ्यात्व सदृश गुरण कौं प्राप्त हो है । ते. सासादन वाले जीव पल्य के असंख्यातवें भाग प्रमाण हैं ।
मिच्छा साक्यसासणमिस्साविरदा दुवारणंता य। . पल्लासंखेज्जदिममसंखगुणं संखसंखगुणं ॥६२४॥
मिथ्याः श्रावकसासनमिश्राविरता द्विवारानंताश्च ।
पल्यासंख्येयमसंख्यगुणं संख्यासंख्यगुणम् ।।६२४॥ टीका - मिथ्यादृष्टी किंचित् ऊन संसार राशि प्रमाण है; तात अनंतानंत हैं। बहुरि देशसंयत गुणस्थानवाले जीव तेरह कोडि मनुष्यनि करि अधिक, तिर्यंच
१.षदखण्डागम धवला : पुस्तक-३, पृष्ठ १०। २. षट्खण्डागम घवला : पुस्तक- पृष्ठ ६३ ।