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पत्रिका माटोका ] T
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सहित पुद्गल के दो अंश सहित रूक्ष पुल सहित बंध होई । वा पंच अंश स्निग्ध का का रूक्ष का सहित पुदगल के स्निग्ध तीन अंश युक्त पुद्गल सहित बंध होइ । असें दोय अधिक भएं बंध जानना । परंतु एक अंशरूप जघन्य गुण युक्त विषे बंध न हो । अन्यत्र स्निग्ध रूक्षं विष सर्वत्र बंध जानना ।
णिद्धिदरवरगाण, संपरट्ठाणे वि वि बंध | बहिरंतरंग - बुहि, गुणतर सगदे एदि ॥६१८॥
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स्निग्धेतरावरगुरणाणुः स्वपरस्थानेऽपि न वधार्थम् । बहिरंतरंग हेतुभिर्गु पातर संगते एसि ।।६१८।।
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टीer - स्निग्ध वा रूक्ष तौ जघन्य एक गुण युक्त परमाणू होइ, सो स्वस्थान या परस्थान विषै बंध के अर्थि योग्य नाहीं है । बहुरि सो परमाणु, जो बाह्य अभ्यंतर कारण तें दोय आदि और अंशनि को प्राप्त होइ जाइ, तो बंध योग्य होइ । तत्त्वार्थ सूत्र विषे भी कहा है, 'न जघन्यगुणानां' याका अर्थ यह ही जो जघन्य गुरंग वारक पुद्गलनि के परस्पर बंध न हो है ।
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णिद्धिदरगुरणा श्रहिया, होणं परिणामयति बंधम्मि संखेज्जासंखेज्जा तपसाण खंधारणं ॥६१६ ॥
ferrer अधिका, होनं परिणामयति बंधे । संख्येया संख्येयाप्रवेशानां स्कंधानाम् ।।६१९ ॥
टीका संख्यात, असंख्यात, अनंत प्रदेशनि के स्कंध) तिनिविषै स्निग्ध गुण क्ष गुणस्कंधा जे दोया गुरुण अधिक होंइ, ते बंध कौं होत संत हीन स्कंध कौं परिणमा हैं । जैसे दोय स्कंध हैं एक स्कंध विषै स्निग्धका या रूक्ष का पचास अंश है । अर एक में बावन अंश है अर तिनिः दोऊ स्कंधनि का एक स्कंध भया तौ । जैसें सर्वत्र जानना । तहां पचास अंशवाले कौं बावन अंश रूप परिणामावै तत्वार्थ सूत्र विषै भो कला है - 'वधिको पारिणामिका व याको अर्थ यह ही जो बंध होते अधिक अशे हैं, सो हीन अशनि की अपरूप परिणामावनहारे हैं । इति फलाधिकारः ।
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१. परिणामि च । तस्थासूत्र : अध्याय सूत्र- ३७ ॥