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गोम्मटसार सीमकाण्ड गाया है
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७०६ ] पाका 'पदभेगेण विहीणं' इत्यादिक सूत्र करि जोड़ दीजिए : तहां गच्छ पाठ, तामें एक घटाएं सात रहे, दोय का भाग दीएं, साढातीन रहे, उत्तर करि गुणें रियालीस भए, प्रादि करि युक्त कीएं, छिहतरि भए, गच्छ करि गुण, छह से आठ भए, सो निरन्तर पाठ समयनि तिर लपक श्रेणी मांडि करि जीव एकठे होहिं, तिनिका प्रमाण छह से आठ जानना । बहुरि उपशमकनि विष आदि सतरह (१७) उत्तर छह (६) गच्छ पाठ (८) जोड दीए, तीन सै च्यारि भए, सो प्रमाण जानना ।
अद्वैव सय-सहस्सा, अछा-उंची तहा संहस्सारणं । संखा जोगिजिणाणं, पंच सय बि-उत्तरं वदे ॥२६॥
अष्टव शतसहस्राणि, अष्टानतिस्तथा सहस्राणाम् ।
संख्या योगिजिनाना, पञ्चशतयुसरं वन्दे ॥६२९॥ टीका --- सयोग केवली जिननि की संख्या आठ लाख अठमाण हजार पांच से दोय (८९८५०२) है । तिनिकों में सदाकाल बंदी हं। इहां निरन्तर पाठ समयनि विर्षे एकठे भए सयोगी जिन अन्य प्राचार्य अपेक्षा सिद्धांत विर्षे असे कहैं हैछसु सुखसमयेसु तिरिय तिष्णि जीवा केवलमुपाययंति दोसु समयेसु दो दो जीवा केवलमुपाययंति एवमट्ठसमयेसु संचिदजीवा बावीसा हवति ॥१॥
याका अर्थ - छह शुद्ध समयनि विर्ष तीन तीन जीव केवलज्ञान की उपजावे हैं । दोय समयनि विर्षे दोय दोय जीव केवलज्ञान कौं उपजावै है । जैसे आठ समयनि विर्षे एकठे भए जीव बावीस हो हैं। ...
भावार्थ --- केवलज्ञान उपजने का छह महिने का अंतराल होइ, तब बीचि में अन्तराल न पडै, असें निरंतर आठ समयनि विर्ष बाईस जीव केवलज्ञान उपजा है। ... सो इहां विशेष कथन विषं छह राशिक हो है।
१. पटखण्डायम - धवला पुस्तक ३, पृष्ठ, ६६ गाथा सं:४६ ३ पाठभेद-पंचपदवित्तर जाण।
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