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[ गोम्मटसार ओवकाण्ड गाया ५६२-५६३ लब्धप्रमाण शलाका असंख्यात भई । बहुरि प्रमाणराशि शलाका का प्रमाण, पाल राशि अवधिज्ञान के भेद, इच्छाराशि एक शलाका, सो यथोक्त करतां अवधिज्ञान के जैते भेद हैं, तिनि के प्रसंख्यातवें भाग प्रमाण धर्म, अधर्म, लोकाकाश, काल इनि च्यायों के एक-एक प्रदेशनि का प्रमाण भया । इति संख्याधिकारः ।
सव्वमरूवी दवं, प्रवद्विदं अचलिया पदेसा वि । रूबी जीवा लिया, ति-वियप्पा होति हु पदेसा ॥५६२॥
सर्वमरूपि द्रध्यमवस्थितमलिताः प्रदेशा अपि ।
रूपिरलो जीवाश्नलितास्त्रिविकल्पा भवंति हि प्रदेशाः ।।५६२॥ ___टीका - सर्व अरूपी द्रव्य जो मुक्त जीव अर धर्म अर अधर्म पर प्रकाश पर काल सो अवस्थित है, अपने स्थान से चलते नाहीं । बहुरि इनिके प्रदेश भी प्रचलित ही हैं; एक स्थान विर्षे भी चलित नाहीं हैं। बहुरि रूपी जीव, जे संसारी जीव ते चलित हैं; स्थान से स्थानांतर विर्षे गमनादि करें हैं । बहुरि संसारी जीवनि के प्रदेश तीन प्रकार हैं। विग्रह गति विर्षे सो सर्व चलित ही हैं। बहुरि अयोगकेबली गुरास्थान विर्षे प्रचलित ही हैं । बहुरि अबिशेष जीव रहे, तिनिके पाठ प्रदेश तो प्रचलित हैं । अरशेष प्रदेश चलित हैं। (योगरूप परिणमन तें) इस प्रात्मा के अन्य प्रदेश तौ चलित हो हैं अर पाठ प्रदेश अकंप ही रहैं हैं ।
पोग्गल-दवम्हि अणू, संखेज्जादी हवंति चलिदा हु। .. चरिम-महक्खंधम्मि य, चलाचला होति पदेसा ॥५६३॥
पुद्गलद्रव्ये अगषः, संख्याताध्यो भवन्ति घालता हि ।
घरममहास्कम्धे च, चलाचला भवंति हि प्रदेशाः ।।५९३॥ टीका - पुद्गल द्रव्य विर्षे परमाणू अर घणुक प्रादि संख्यात, असंख्यात, अनंत परमाणू के स्कंध, ते चलित हैं। बहुरि अंत का महास्कंध विर्षे केई परमाणू प्रचलित हैं; अपने स्थान ते त्रिकाल विर्षे स्थानांतर को प्राप्त न होंइ । बहुरि केई परमाणू चलित हैं; ते यथायोग्य चंचल हो हैं।
१. ब, घ प्रति में 'योगरूप परिणमग ते' इतना ज्यादा है।