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सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका भाषाटीका 1
{ ६६ ववहारो पुण तिविहो, तोदो वीतगो भविस्सो दु । तीदो संखेज्जावलिहवसिद्धाणं पमाणो दु॥५७८॥
व्यवहारः पुनस्त्रिविधोऽतीतो वर्तमानो भविष्यंस्तु। .
अतीतः संख्येयावलिहतसिखानां प्रमाणं तु ॥५७८॥ टोका --- बहुरि व्यवहार काल तीन प्रकार है अतीत, अनागत, वर्तमान । तहां अतीत काल सिद्ध राशि क्रौं संख्यात प्रावली करि गुण, जो प्रमाण होइ, तितना जानना । कैसे ? सो कहिए हैं - छह महीना अर आठ समय माहीं छ सँ पाठ जीव सिद्ध ही हैं। तो जीव राशि के अनंतवें भाग प्रमाण सर्व सिद्ध केते काल में भये ? असे त्रैराशिक करना । तहां प्रमाण राशि छ सै आठ, फल राशि छह महीना पाठ समय, इच्छा राशि सिद्धनि का प्रमाण, सो फल राशि की इच्छाराशि करि गुण, प्रमारणराशि का भाग दीए, लन्त्रराशि संख्यात प्रावली करि तिद्वनि कौं गुणें जो प्रमाण होइ, तितना पाया। सोई अनादि तें लगाइ अतीत काल का परिमाण जानना।
समथो हु बट्टमारन, सीधाको सयपुग्गलाबो वि। भावी प्रपंतगुरिणदो, इंदि ववहारी हवे कालो ॥५७६॥
समयो हि वर्तमानो, जीवात् सर्वपुद्गलादपि ।
भावी अनन्तमुरिणत, इति व्यवहारो भवेत्कालः ॥५७६॥ टीका - वर्तमान काल एक समय मात्र जानना । बहुरि भावी जो अनामत काल, सो सर्व जीवराशि तें वा सर्व पुद्गलराशि तें भी अनंतगुणा जानना । असे व्यवहार काल तीन प्रकार कह्या ।
कालो वि य ववएसो, समारूवओ हदि णिच्चो। उप्पण्णपद्धंसी, अवरो दोहंतरट्ठाई ॥५८०॥
काल इति च व्यपदेशः, सद्भावप्ररूपको भवति मित्यः ।
उत्पन्नप्रध्वंसी अपरो दीर्घान्सरस्थायी ॥५८०॥ टीका - काल असा जो लोक विष कहना है, सो मुख्य काल का अस्तित्व का कहनहारा है। मुख्य बिना गौरा भी न होइ । जो सिंह पदार्थ ही न हो तो यह पुरुष सिंह असा कैसे कहने में भायै सो मुख्य काल द्रव्य करि नित्य है, तथाषि-पर्याय