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का भाषादीका 1
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तहां जो बहुत पीडा के निमित्त तें प्रदेशनि का निकसना, सो वेदना समुद्घात है । बहुरि क्रोधादि कषाय के निमित्त तें प्रदेशनि का निकसना; सो कषायसमुदुधात है । विक्रिया के निमित्त लें प्रदेशनि का निकसना; सो वैक्रियिक समुद्घात है । मरण होते पहिले जो नवीन पर्याय के धरने का क्षेत्र पर्यंत प्रदेशनि का निकसना; सो मारणांतिक समुद्घात है । अशुभरूप वा शुभरूप तेजस शरीरनि करि नगरादिक को जलावै वा भला करें, ताकी साथि जो प्रदेशनि का निकसना, सो तेजस्र समुद्घात है । प्रमत्त गुणस्थानवाले के ग्राहारक शरीर की साथि प्रदेशनि का निक्सना सो आहारक समुद्घात है । केवलज्ञानी के दंड कपाटादि क्रिया होतें प्रदेशनि का निकसना; सो केवली समुद्घात है । जैसे समुद्घात के सात भेद हैं ।
बहुरि पहले जो पर्याय धरता था, ताकों छोडि, पहिले समय अन्य पर्याय रूप होइ, अंतराल विषै जो प्रवर्तना; सो उपवाद कहिए। याका एक भेद हो है । जैसे ए दश स्थान भए । तहां कृष्णले लावाले जीवणि काया रेदनासमुद्घात, कषायसमुद्घात, मारणांतिकसमुद्घात, उपपाद इनि पंच पदनि विषै क्षेत्र सर्व लोक जानता । अब इनि जीवनि का प्रमाण कहिए हैं
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कृष्ण श्यावालों का जो पूर्वे परिमाण कला, तार्कों संख्या का भाग दीजिए, तहां बहुभाग प्रमाण तो स्वस्थानस्वस्थानवाले जीव हैं । भाग देइकरि तहां एक भाग को तो जुदा राखिए, अवशेष जो रहै, ताक बहुभाग कहिए, यहू सर्वत्र जानना । बहुरि जो एक भाग रह्या, ताकी संख्यात का भाग दीजिए, तहां बहुभाग प्रमाण वेदनासमुद्घातवाले जीव हैं । बहुरि जो एक भाग रह्या, तार्कों संख्यात का भाग दीजिए, तहां बहुभाग प्रमारण कषाय समुद्घातवाले जीव हैं । बहुरि एक भाग रह्या, ताक फलराशि करिए, बहुरि एक निगोदिया का आयु सांस के अठारह भाग तिस प्रमाण अंतर्मुहूर्त के जेते समय होंइ, सो प्रमाण राशि करिए । बहुरि एक समय की इच्छा राशि करिए। तहां फल की इच्छाराशि करि गुणि, प्रमाण का भाग दीएं, जेता प्रमाण आवं, तितना जीव उपपादवाले हैं । बहुरि इस उपपादवाले जीवनि के प्रमाण को मारणांतिक समुद्घात काल अंतर्मुहूर्त, ताके जेते समय होंहि, तिनकरि गुणे, जो प्रमाण होइ, तितने जीव मूलराशि के संख्यातवें भागमात्र मारणांतिक समुवातवाले जानते, असे ए जीव सर्वलोक विषै पाइए । ताते इनिका क्षेत्र सर्वलोक है । बहुरि विहारवत्स्वस्थान विषे क्षेत्र संख्यात सूच्यंगुलनि करि जगत्प्रतर की गुरौं, जो प्रमाण होइ, तितना जानना । कैसे ? सो कहिए हैं
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