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सम्यशामचम्किा भाषाटीका 1
बहुरि असे परमाणूनि के पुद्गलपना होते वणुक आदि स्कंधनि के कैसे पुद्गलपना है ?
सो कहिए हैं - कोऊ परमाणू मिले है, कोऊ बिछुरै है, सो असा प्रदेशनि का पूरण गलन करि करि जे द्रवें हैं. द्रवंगे 5ए, तातें तिनकों पुद्गल कहिए है । अपने स्वभाव रूप परिणमने का नाम बना है। इस ट्रवत्व गुण तें द्रव्य नाम पावै है।
इहां प्रश्न - जो परमाणू की अविभाग निरंश कहिए है, सो परमाणू तो छह कौण की लीएं गोल आकार है; सो जहां छह कोण भए, तहां छह अंश सहज ही आए, तो निरंश कैसे कहिए ?
उक्त च -
षट्कोरणयुगपद्योगात्परमारणोः षडशता ।
षण्णां समानदेशित्वे, पिडं स्यादणुमात्रकम् ॥१॥ अर्थ -- युगपत् छह कौण का समुदाय है; तातें परमाणू के छह अंशपना संभव है । छहौ कौं समानरूप कहते सतें परमाणू मात्र पिंड हो है।
ताका उत्तर - परमाणू के द्रव्यार्थिक नय करि निरंशपणा है; परंतु पर्यायार्थिक नय करि छह अंश कहने में किछु दोष नाहीं। उक्त च -
आद्यंतरहितं तथ्य, विश्लेषरहितांशकम् ।। स्कंधोपादानमत्यरं, परमाणु प्रचक्षते ॥१॥
जो द्रव्य आदि अंत रहित है । बहुरि जिस विषं छह अंश पाइए है। ते कबहूं भिन्न भिन्न न हो हैं, तातै भिन्न भाव रहित अंश की धरै हैं । बहुरि स्कंध ग्रहण की शक्ति का धारक है । बहुरि इंद्रिय गम्य नाहीं है । असे द्रव्य को परमाणू कहिए है । परमाणू विर्षे कोणानि की अपेक्षा छह अंश हैं । ते अंश कहूं भिन्न भिन्न न होई । अथका परमाणू ते छोटा जगत विष कोऊ और पदार्थ भी नाहीं है । जिसकी अपेक्षा करि भाग कल्पना कीजिए; तातें परमाणू कौं अंबिभाग कहिए है । बहुरि कोणनि. की अपेक्षा छह अंश कहिए; ती भी किछु दोष नाहीं । बहुरि आदिपुराणादि विषं