________________
...
६२० ।
[ पोन्मवसार गौवकाण्ड गाथा ५४४ शरीर से बाह्य प्रदेश फैले ते मुख्यपर्ने एक राजू के संख्यातवें भाग प्रमाण लंबे पर सूच्यंगुल के संख्यातभाग प्रमाण चौडे वा ऊंचे क्षेत्र कौं रोके । याका घनरूप क्षेत्रफल कीजिए, तब प्रतरांगुल का संख्यातवां भाग करि जगच्छे रणी का संख्यातवां भाग कौं गुरणे, जो प्रमाण होइ, तितना क्षेव भया । इसकरि दुरि मारणांतिक जीवनि का प्रमाण कौं गुणिये, तब सर्व जीव संबंधी दूर मारणांतिक समुद्घात का क्षेत्र हो है । अन्य मारणांतिक समुद्धात का क्षेत्र स्लोक है, लातें मुख्य ग्रहण तिस ही का कीया । बहुरि तेजस समुद्धात विः, शहीर तें बाह्यप्रदेश. निकस, ते बारा योजन लंबा, नव योजन चौडा, सूच्यंगुल का-संख्याल वां भाग प्रमाण ऊंचा क्षेत्र की रोक, सो याका धनरूप क्षेत्रफल संख्यात धनांगुल:प्रमाण भया । इसकरि तंजस समुद्धात करनेवालों का प्रमाण संख्यात है । तिसकौं गुणे -जो प्रमाण होइ, तितना तैजस समुद्धात विर्षे क्षेत्र जानना । बहुरि आहारक समुद्धात विर्षे एक जाव के शरीर से बाह्य निकसे प्रदेश, ते संख्यात योजन प्रमाण लंबा, पार सूच्यंगुल का संख्यातवां भाग प्रमाण चौडा ऊंचा क्षेत्र कौं रोके, याका धनरूप क्षेत्रफल संख्यात घनांगुल प्रमाण भया । इसकरि आहारक समुद्धातवाले जीवनि को संख्यीत प्रमाण है; ताकौं गुणे जो प्रमाण होइ, तितना आहारक समुद्घात विष क्षेत्र जानना । मूल शरीर तें निकसि आहारक शरीर जहां जाय, तहां पर्यंत लंबी प्रोत्मा के प्रदेशनि की श्रेणी सूच्यगुल का संख्यातवां भाग प्रमाण चौडी पर ऊंची आकाश विष हो है; "अंसा भावार्थ जानना । जैसे ही मारणांतिक समुद्घातादिक विर्षे भी भावार्थ जानि लेना।
मरदि असंखेजदिम, तस्सासंखा:य विगहे होति । तस्सासंखं दूरे, उववाद तस्स खु-असंखं ।।५४४॥
म्रियते प्रसंख्येयं, तस्यासंख्याश्च विग्रहे भवति ।
तस्यासंख्य दूरे, उपपावे तस्य खलु प्रसंख्यम् ३५४४॥ टीका - इस सूत्र का अंभिप्राय उपपाद क्षेत्र ल्यावने का है, सो पीत लेश्यावाले सौधर्म - ईशानवर्ती जीव मध्यलोक ते दूर क्षेत्रवती हैं; सो तिनके कथन में क्षेत्र का परिमाण बहुत पावै । बहुत प्रमाण में स्तोक प्रमाण गभित करिए है । तातै तिनकी मुख्यता करि उपपाद क्षेत्र का कथन कीजिए हैं।
सौधर्म - ईशान स्वर्ग के वासी देव घातांगुल का तृतीय वर्गमूल करि जगच्छणी कौं गुरिगए, तितने प्रमाण हैं । इस प्रमाण को पल्य का असंख्यातवां भाग
-