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गोम्मदवार जीवकाण्ड गाथा ५५६
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पार भए हैं । बहुरि अतींद्रिय - अनंत सुख करि तृप्त हैं । बहुरि प्रात्मा की उपलब्धि है लक्षण जाका, जैसी सिद्धिपुरी कौं सम्यक् पर्ने प्राप्त भए हैं, ते अयोगकेवली वा सिद्ध भगवान लेश्या रहित अलेश्य जानने ।
इति श्री प्राचार्य नेमिचंद्र सिद्धांत चक्रवर्ती विरचित गोम्मटसार द्वितीयनाम पंचसंग्रह ग्रंथ की
जीवतत्वप्रदीपिका नाम संस्कृत टीका के अनुसारि सम्यग्ज्ञान चंद्रिका नामा भाषाटोका विर्षे जीवकाण्ड विर्षे प्ररूपित बीस प्ररूपणा तिलिविर्षे लेश्यामार्गरणा प्ररूपणा है नाम
जाका असा पंद्रहां अधिकार संपूर्ण भया ।।१५।।
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जो जीव तत्त्वज्ञानी होकर इस करणानुयोग का अभ्यास करते हैं, उन्हें यह उसके विशेषरणरूप भासित होता है । जो जीवादिक तत्वों को आप जानता है, उन्हीं के विशेष करणानुयोग में किये हैं, वहाँ कितने ही विशेषण तो यथावत निश्चयरूप हैं, कितने ही उपचार सहित व्यवहाररूप हैं, कितने ही द्रव्य-क्षेत्र-काल भावादिक के स्वरूप प्रमाणादिरूप हैं, कितने ही निमित आश्रयादि अपेक्षा सहित हैं,-इत्यादि अनेक प्रकार के विशेषण निरूपित किये हैं, उन्हें त्यों का त्यों मानता हुआ उस करणानुयोग का अभ्यास करता
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इस अभ्यास से तत्वज्ञान निर्मल होता है । जैसे-कोई यह तो जानता था कि यह रत्न है, परंतु उस रत्न के बहुत से विशेष जानने पर निर्मल रत्न का पारखी होता है, उसी प्रकार तत्वों को जानता था कि यह जीवादिक हैं, परन्तु उन तत्त्वों के बहुत विशेष माने तो निर्मल तत्वज्ञान होता है। तत्त्वज्ञान निर्मल होने पर आप ही विशेष धर्मात्मा होता है।
.. पण्डिस टोडरमलः मोक्षमार्ग प्रकाशक, पृ०-२७०
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