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सम्माजामपन्द्रिका भावारीका
अब इनिका काल कहिए हैं
सर्व से स्तोक एक पुद्गलपरिवर्तन का काल हैं, सो अनंत है । बहुरि ताते अनंत गुणा क्षेत्र परिवर्तन का काल है। बहरि तातें अनंत गुणा काल परिवर्तन का काल है । बहुरि तातें अनंत गुणा भव परिवर्तन का काल है । बहुरि तात् अनंत गुणा भाव परिवर्तन का काल है। याहीं तें एक जीव के अनादि से लगाइ, 'अतीत काल विर्षे भाव परिवर्तन थोरे भए; ते परिण अनंत भए । बहुरि तिनित अनंतगुण भव परिवर्तन भए । बहुरि तिनित अनंत मुरणे काल परिवर्तन भए । बहुरि तिनितें अनंत गुणे क्षेत्र परिवर्तन भए, बहुरि तिनित अनंत गुणे द्रव्य परिवर्तन भए, असे जानना।
बहुरि जैसे स्वर्गादि विष दिन-रात्रि का अभाव है, तहां मनुष्य क्षेत्र अपेक्षा वर्ष आदि का प्रमाण कीजिए हैं, तैसें निगोदादि विर्षे जीवनि के जैसे जहां परिवर्तन का अनुक्रम न हो है । तहां अन्य जीव अपेक्षा परिवर्तन का काल ग्रहण कीजिए है । - उक्तं व आर्याछंद-. .....
पंचविधे संसारे, कर्मवशाजनदर्शित मुक्तः
मार्गमपश्यन् प्राणी, नानदुःखकुले भ्रमति ।। जिनमत करि दिखाया जो मुक्ति का मार्ग, ताकौं न श्रद्धान करता प्राणी जीव नाना प्रकार दुःखनि करि पाकुलित जो पंच प्रकार संसार, तीहिविर्षे भ्रमण करे है ।
इति प्राचार्य श्री नेमिचन्द्र सिद्धांतचक्रवति विरचित गोम्मट सार वितीय नाम पंचसंग्रह ग्रंथ की जीवतत्वप्रदीपिका नामा संस्कृत टीका के अनसारि सम्यग्ज्ञानचंद्रिकानामा भाषाटीका विर्षे जीवकाण्ड विर्षे प्ररूपित जे वीस प्ररूपणा तिनि विर्षे भव्यमार्यरा प्ररूपमा है
नाम जाका प्रैसा सोलहवां अधिकार संपूर्ण भया ॥१६॥