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[ गोम्मटसार जीवकाण्ड गाया ५४३
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करि सात धनुष ऊंचा पर सात धनुष के दशवें भाग मुख की चौड़ाई है, प्रमाण जाका असा है, सो याका क्षेत्रफल कीजिए है।
वासोति गुणो परिही, वास चउस्थाहदो वु खेत्तफलं ।
खेतफलं वेहिगुणं, खारफलं होदि सम्वत्थ ।। इस करणसूत्र करि क्षेत्रफल करना । गोल क्षेत्र विष चौडाई के प्रमाण से तिगुणा तौ परिधि होइ । इस परिधि कौं चौडाई का चौथा भाग ते गुणे, क्षेत्रफल होइ । इस क्षेत्रफल की ऊंचाई रूप जो बेध, ताके प्रमाण करि गुणे, धनरूप क्षेत्र. फल हो है । सो इहां सात धनुष का दशवां भागमात्र चौडाई, ताकौं तिगुणी कीए, परिधि होइ । याकौ चौंडाई का चौथा भाग करि गुणे, क्षेत्रफल हो है । याकौं बेध सात धनुष करि गुणे, धनरूप क्षेत्रफल हो है ! बहुरि जो धनराशि होइ, ताके गुणकार भागहार घनरूप ही होइ । तातें इहां अंगुल करने के निमित्त एक धनुष का छिन अंगुल होइ, सो जो धनुषरूप क्षेत्रफल भया, ताकी छिनवे का धन करि गुरिणए । बहुरि इहां तो कथन प्रमाणांगुल तें हैं । श्रर देवनि के शरीर का प्रमाण उत्सेधांगुल से है । तातें पांच से का धन का भाग दीजिए; असे करते प्रमाणरूप घनांगुल के संख्यातवें भाग प्रमाण एक देव का शरीर की अवगाहना भई । इसकरि पूर्व जो स्वस्थानस्वस्थान वि. जीवनि का प्रमाण कहा था, ताकौं गुण, जो प्रमाण होइ, तितना क्षेत्र स्वस्थानस्वस्थान विर्षे जानना ।
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बहुरि वेदनासमुद्घात विर्षे धा कषायसमुद्धात विर्षे प्रदेश मूल शरीर ते बाह्य निकसै, सो एक प्रदेश क्षेत्रकौं रोक वा दोय प्रदेश मात्र क्षेत्र कौं रोक, असे एक-एक प्रदेश बधता जो उत्कृष्ट क्षत्र रोके, तो मूल शरीर तें चौडाई विर्षे तिगुणा क्षेत्र रोके अर उचाई मूल शरीर प्रमाण ही है । सो याका घनरूप क्षेत्रफल कीएं, मूल शरीर के क्षेत्रफल तें नव गुणा क्षेत्र भया, सो जघन्य एक प्रदेश अर उत्कृष्ट मूल शरीर तें नव गुणा क्षेत्र भया; सो होनाधिक कौं बरोबरि कोएं एक जीव के मूल शरीर ते साढा च्यारि गुणा क्षेत्र भया; सो शरीर का प्रमाण पूर्वं धनागुल के संख्यातवें भाग प्रमारण कया था, ताकौं साढा चारि गुणा कीजिए, तब एक जीव संबंधी क्षेत्र भया । इसकरि वेदना समुद्घातवाले जीवनि का प्रमाण कौं गुरिणए, तब वेदना समुद्धात विर्षे क्षेत्र होइ । बहुरि कषायसमुद्धातवाले जीवनि का प्रमाण कौं मुरिगए तब कषाय समुद्घात विर्ष क्षेत्र होइ । बहुरि विहार करते देवनि के मूल शरीर से
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