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| गोम्मटसार भौखकाण्ड बाया ५५२-५५,३ टीका - कृष्ण प्रादि छहाँ ले यानि का काल नाना जीवनि की अपेक्षा सर्वाद्धा कहिये सर्व काल है । बहुरि एक जीव अपेक्षा छहाँ लेश्यानि का जघन्यकाल तो अंतमुंहूर्त प्रमाण जानना।
उवहीणं तेत्तीसं, सत्तरसत्तेव होंति दो चेव । अट्ठारस तेत्तीसा, उक्कस्सा होति अदिरेया ५५२॥
उवधीनां त्रयस्त्रिशत, सप्तदश सप्तव भवंति द्वौ चैत्र ।
अष्टादश अर्यास्त्रशत, उत्कृष्टाः भवंति अतिरेकाः ॥५५२॥ टीका - बहुरि उत्कृष्ट काल कृष्णलेश्या का तेतीस सागर, नीललेश्या का सतरह सागर, कपोतलेश्या का सात सागर, तेजोलेश्या का दोय सागर, पालेश्या का अठारह सागर, शुक्ललेश्या का तेतीस सागर किछ किछ अधिक जानना । सो अधिक का प्रमाण कितना ? सो कहैं हैं - यह उत्कृष्ट काल नारक वा देवनि की अपेक्षा कया है। सो नारकी पर देव जिस पर्याय ते आनि उपजै, तिस पर्याय का अंत का अंतर्मुहूर्त काल बहुरि देव नारक पर्याय छोडि जहां उपजे, तहां आदि विर्षे अंतर्मुहूर्त काल मात्र सोई लेश्या हो हैं । तातै पूर्वोक्त काल से छहौं लेश्यानि का काल विर्षे दोय दोय अंतर्मुहूतं अधिक जानना । बहुरि तेजोलेश्या अर पालेश्या का काल विर्षे किंचित् ऊन प्राधा सागर भी अधिक जानना; जातें जाके आयु का अपवर्तन घात भया असा जो घातायुष्क सम्यग्दृष्टी, ताके अंतर्मुहूर्त घाटि आधा सागर प्रायु बधता हो है जैसे सौधर्म-ईशान विर्षे दोय सागर का प्रायु कह्या है; ताहां धातायुष्क सम्यग्दृष्टी के अंतर्मुहूर्त पाटि अढाई सागर भी प्रायु हो है; असे ऊपर भी जानना । बहुरि असें ही मिथ्यादृष्टि धातायुष्क के पल्य का असंख्यातवां. भाग प्रमाला प्रायु बधता हो है; सो यह अधिकपना सौधर्म ते लगाइ सहस्रार स्वर्ग पर्यंत जानना । ऊपर घातायुष्क का उपजना नाही, तातै तहां जो आयु का प्रसारण कया है, तितना ही हो है; असे अधिक काल का प्रमाण जानना । इति कालाधिकार:
आगें अंतर अधिकार दोय गाथानि करि कहै हैंअंतरमवरुक्कस्सं, किण्हतियाणं महत्तअंतं तु । उवहीणं तेत्तीसं, अहियं होदि त्ति रिणदिदळें ॥५५३॥
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