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सम्यमानञ्चन्द्रिका भाषाटोका ।
[ ६३६ कषाय, वैक्नियिक, मरणांतिक समुद्घातनि विषं स्पर्श चौदह भागनि विर्षे छह भाग किछ एक धाटि स्पर्श जानना । जातें अच्युतस्वर्ग के ऊपरि देवनि के स्वस्थान छोडि. अन्यत्र गमन नाहीं है । तातै अच्युत पर्यंत ही ग्रहण कीया । बहुरि तेजस, आहारक समुद्घात विर्षे संख्यात धनांमुल प्रमाण स्पर्श जानना है ।
णयरि समुग्धादम्मि य, संखातीदा हवंति भागा वा । सन्वो वा खलु लोगो, फासो होदि ति णिहिटहो ।।५५०॥
नवरि समुद्घाते च, संख्यातीला भवंति भागा वा ।
सर्वो वा खलु लोकः, स्पर्शो भवतीति निदिष्टः ॥५५०॥ टीका -- केवल समुद्धात विर्षे विशेष है, सो कहा ? ..
दण्ड विर्षे तो स्पर्श क्षेत्र की नाई संख्यात प्रतरांगुलनि करि गुण्या हुवा जगन्छे णी प्रमाण, सो करणे पर समेटने की अपेक्षा दूरणा जानना । बहुरि पूर्वाभिमुखं स्थित वा उपविष्ट कपाट विष संख्यात सूच्यंगुलमात्र जगत्प्रतरं प्रमाण हैं, सो करणे, समेटने की अपेक्षा गुणा स्पर्श जानना । बहुरि तैसे ही उत्तराभिमुख स्थित वा उपविष्ट कपाट विर्षे स्पर्श जानना । बहुरि प्रतर समुद्धात विर्षे लोक कौं असंख्यात का भाग दीजिए, तामैं एक भाग विना अवशेष बहुभाग मात्र स्पर्श है । जातें बात बलय का क्षेत्र लोक के असंख्यातवें भाग प्रमाण है, तहां व्याप्त न हो है । बहुरि लोकपूरण विर्षे स्पर्श सर्व लोक जानना, असा नियम है ।
___ बहुरि उपपाद विर्षे चौदह भाग विर्षे छह भाग किंचित् ऊन स्पर्श जानना । जातें इहां पारण - अच्युत पर्यंत ही की विवक्षा है । इति स्पर्शाधिकार : '!
आमैं काल अधिकार दोय गाथानि करि कहैं हैंकालो छल्लेस्साणं, णाणाजीवं पडुच सव्वद्धा। अंतोमुत्तमवरं, एग जीवं पडुच्च हवे ॥५५॥
कालः षड्लेश्यानां, नानाजीवं प्रतीत्य सर्वाद्धा.... अंतर्मुहूर्तोऽवरं एक, जीवं प्रतीत्य भवेत् ।।५५॥