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सम्याज्ञानचन्द्रिका भाषाटोका ]
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जगच्छेशी को गुरौं, जो प्रमाण होइ, तितने भवनवासो । बहुरि तीन से योजन के वर्ग का भाग जगत्प्रतर को दोए जो प्रमाण होइ, तितने व्यंतरः । बहुरि घनांगल का तृतीय वर्गमूल करि जगच्छे जो की गुण, जो प्रमाण होइ, तितने सौधर्म ईशान स्वर्ग के वासी देव बहुरि पांच बार संख्यात करि गुणित पणट्टी प्रमाण प्रतसंगुल का भाग, जगत्प्रतर की दीए, जो प्रनाम होइ, तिने तेजोलेश्याले बहुरि संख्यातः तेजोलेश्यावाले मनुष्य, इति सबनि का जोड़ दीए, जो प्रमाण होइ, तितने जीव तेजोलेश्याचाल जानने । बहुरि पालेश्यावाले जीव, तेजोलेश्यावाले जीवनि तें संख्यात गुणे घाटि हैं। तथापि तेजोलेश्यावाले संज्ञी तियंचति तें भी संख्यात गुणे घाटि हैं; जाते पद्मलेश्यावाले पंचेंद्री सैनी तिर्यंचनि का प्रमाण विषे पलेश्यावर ले कल्पवासी देव र मनुष्य, तिनिका प्रमाण मिलाए, जो जगत्प्रतर का प्रसंख्यातवें भागमात्र प्रमाण भया तितने पथलेश्यावाले जीव हैं । बहुरि शुक्ललेश्यावाले जीव सूच्यंगुल के श्रसंख्यातवें भाग प्रभाग हैं । असे क्षेत्र प्रमाण करि तीन शुभ लेश्यावाले जीवनि का प्रमाण कहा ।
बेसदछप्पण्णंगुल-कंदि-हिद- पदरं तु जोइसियमाणं ।
दस् य संखेज्जदिमं तिरिकखसीण परिमाणं ॥५४१॥
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द्विशतषट्पंचाशदंगुलक लिहितप्रतरं तु ज्योतिष्कमानम् । तस्य च संख्येयतमं तिर्यक्संज्ञिनां परिमाणं ॥ ५४१
टीका - पूर्वे जो तेजोलेश्यावालों का प्रमाण ज्योतिषी देवराशि तें साधिक कला, अर पद्मलेश्या का प्रमाण संज्ञी तियंचनि के संख्यातवें भागमात्र का, सो दोय से छप्पन का वर्ग पणट्टी, तीहि प्रसाराः प्रतरांगुल का भाग जगत्प्रतर कौं दीएं, जो प्रमाण होइ, लितने ज्योतिषी जानने । बहुरि इनके संख्यातवें भाग प्रमाण सैनी तिर्यत्वनि का प्रमाण जानता।
are असंखnter, पल्लासंखेज्जभागया सुक्का ।
ओहि प्रसंखेज्जदिमा, तेउतिया भावदो होति ॥५४२ ॥
aster : असंख्यकल्पाः मॅल्या संख्येयभागकाः शुषलाः । अवध्यसंख्येयाः तेजस्त्रिका भावतो भयंतिः ॥ ५४२ ॥ ३