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चौदहवां अधिकार : दर्शनमार्गणा ...
इस अनन्त भव उदधित, पार. करनकौं सेतु ।
श्री अनंत जिनपति नमो,, सुख अनन्त के हंतु ।। प्राग दशनमागणा का कहह.. आगें दर्शनमार्गणा कौं कहै हैं
.. ..... . जं सामण्णं गहणं, भावाणं णेव कटुमायारं । अबिसेसिदूरण अद्वै, सणमिति भण्णदे समये ॥४८२॥
यत्सामान्य ग्रहणं, भावानां नैव कृत्वाकारम् ।
अविशेष्यार्थान, दर्शनमिति भण्यते समये ।।४८२।। टीका - भाव जे सामान्य विशेषात्मक पदार्थ, तिनिका प्राकार कहिए भेद ग्रहण, ताहि नैव कृत्वा कहिए न करिक यत् सामान्य ग्रंहरण काहिए जो सत्तामात्र स्वरूप का प्रतिभासना तत् दर्शनं कहिए सोई दर्शन परमागम विर्षे कहा है । कैसे ग्रहण करें हैं ? अर्थान् अविशेष्य अर्थ जे बाह्य पदार्थ, तिनिकौं अविशेष्य कहिए जाति, क्रिया, गुण, प्रकार इत्यादि विशेष न करिके अपना वा अन्य का केवल सामान्य रूप सत्तामात्र ग्रहण करै है।
इस ही अर्थ कौं स्पष्ट करें हैंभावाणं सामण्णविसेसयाणं सरूवमेत्तं जं। वण्णणहीणग्गहणं, जीवेण य वंसणं होदि ॥४८३॥
भावानां सामान्यविशेषकानां स्वरूपमात्रं यत् ।
वर्णनहीनग्रहणं, जीवेन च दर्शनं भवति ॥४८३॥ टीका - सामान्य विशेषात्मक जे पदार्थ, लिनिका' स्वरूप मात्र भेद रहित, जैसे हैं तैसें जीव करि सहित स्वपर सत्ता का प्रकाशना, सो दर्शन है। जो देख वा जा गरि देखिए वा देखने मात्र, सो दर्शन जानना ।
१. षट्खडागम-धवला पुस्तक २, पृष्ठ १५०, गाथा सं १३, द्रव्यसंग्रह माथा सं. ४३ । २. वर्धन संबंधी विशेष स्पष्टीकरण के लिए देखो-धला पुस्तक १, पृष्ठ १.४६ से. १४६ दफ।