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म्यजानचन्तिका भाषाटीका
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आठवां अपकर्ष विषं पर भव की प्रायुः को बंधने की योग्यपना जानना । अंस ही जो भुज्यमान प्रायु का प्रमाण होय, ताके त्रिभाग त्रिभाग विर्षे पाठ अपकर्ष जानने ।
बहुरि जो आठौ अपकर्षनि विर्षे आयु न बंधैं अर नवमां आदि अपकर्ष है नाही, तौ आयु का बंध कैसे होइ ?
सो कहै हैं - असंक्षेपाद्वा जो प्रावली का असंख्यातवां भाग प्रमाग काल' भुज्यमान अायु का अवशेष रहै ताके पहिले अंतर्मुहूर्त काल मात्र समय प्रबद्धनि करि परभव की आयु कौं बांधि पूर्ण कर है, असा नियम है । इहां विशेष निर्णय कीजिए है - विषादिक का निमित्तरूप कदलीधात करि जिनका मरण होइ, ते सोपक्रमायुःक . कहिए । तात देव, नारकी, भोगभूमियां अनुपक्रमायुष्क हैं । सो सोपक्रमायुष्क हैं, ते पूर्वोक्त रीति करि पर भव का आयु को बांधे हैं । तहां पूर्वोक्त आठ अपकर्षनि विर्षे .. आयु के बंध होने कौं योग्य जो परिणाम तिनकरि केई जीव पाठ वार, केई जोव सात वार, केई छह वार, केई पांच वार, केई च्यारि वार, केई तीन वार, केई दो वार, केई एक वार परिणमैं हैं।
प्रायु के बंध योग्य परिणाम अपकर्षणनि विर्षे हो होइ, सो असा कोई स्व- . । भाव सहज ही है । अन्य कोई कारण नाहीं ।
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तहां तीसरा भाग का प्रथम समय विर्षे जिन जीवनि करि परभव के आयु का बंध प्रारंभ किया, ते अंतर्मुहूर्त ही विर्षे निष्ठापन करें। अथवा दूसरी बार आयु का नवमा भाग अवशेष रहैं, तहां तिस बंध होने की योग्य होइ । अथवा तीसरी बार प्रायु का सत्ताईसवां भाग अवशेष रहै, तहां तिस बंध होने को योग्य होइ, असे पाठवां अपकर्ष पर्यंत जानना । जैसा किछु नियम है नाही -- जो इनि अपकर्षनि विर्ष आयु का बंध होइ ही होइ । इनि विर्षे आयु के बंध होने की योग्य होइ । जो बंध होइ तो होइ न होइ तौ न होइ । असैं आयु के बंध का विधान करा । .
__ जैसे अन्यकाल विर्षे समय समय प्रति समयप्रबद्ध बंध हैं, सो प्रायुकर्म विना सात कर्मरूप होइ परिगम है । तैसें आयुकर्म का बंध जेता काल में होइ, तिसने काल वि जे समय समय प्रति समयप्रबद्ध बंध ते आठों ही कर्मरूप होइ परिण में हैं जैसे जानना।
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